ek phool ke chah ki summary
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एक फूल की चाह कविता ,सियारामशरण गुप्त जी द्वारा रचित तत्कालीन समाज में छुआछूत की भावना को बड़े ही मार्मिक ढंग से दर्शाती है . ... बेटी ने देवी के मंदिर के प्रसाद के रूप में एक फूल की चाह प्रकट की . बेटी की इच्छा को पूरी करने के लिए पिता पर्वत इस्थित मंदिर गया .
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सियारामशरण गुप्त की रचना "एक फूल की चाह "तत्कालीन छुआछूत प्रथा से पीड़ित सुखिया के पिता की दुख - भरी कथा का वर्णन है।
चारों ओर महामारी फैली हुई थी किन्तु सुखिया मनाही करने पर भी बाहर खेलने जाती है और महामारी के प्रकोप से ग्रस्त हो जाती है | महामारी के प्रभाव से पीड़ित सुखिया की कामना रहती हैं कि उसे देवी मां के मंदिर का एक फूल मिल जाए | उसका ज्वर बढने लगता है और शरीर शिथिल पड़ने लगता है | सुबह से संध्या और रात्री आते तक वाचाल सुखिया शांत सोयी पड़ी हुई थी | स्वयं सुखिया के पिता ने उसकी इस इच्छा को पूरी करने के लिए मंदिर की उत्सवभरी रात्री में पतिततारिणी माँ के जयकारे सुने |
इस प्रतीति में कि एक अज्ञात शक्ति उन्हें धकेल रही है वे मंदिर की ओर अग्रसर हो गए | वहाँ उन्हे प्रसाद प्राप्त होता है किन्तु पुण्य प्रसून पाने की लालसा में सुखिया के पिता प्रसाद भूल जाते है | देवी मां के मंदिर से वे जब फूल लेकर लौटने लगते हैं तो उन्हें धूर्त बताकर तथा अछूत होने के कारण मंदिर की शुचिता कलुषित करने का आरोप लगाकर सवर्णों द्वारा उनकी पिटाई की जाती है । जबकि वे यह कहकर प्रतिकार भी करते है कि "माँ की महिमा के आगे मेरी अशुद्धता कितनी है?या टिकेगी ?" मंदिर के भक्तो द्वारा उन्हें न्यायालय ले जाया जाता है | न्यायालय उन्हें सात दिनों की कैद का दंड सुना देता है। कैद में अनवरत आँसू बहाने के बाद वहाँ से छूटने पर सुखिया के पिता को सुखिया की चिता की ठंडी राख मिलती है ; जो उनके ह्रदय में ऐसी ज्वाला को जला देती है जिसके परिणाम स्वरुप उनका मन निरंतर उन्हें कचोटता रहता है कि वह अपनी बेटी की अंतिम इच्छा "एक फूल की चाह " को भी पूरा नहीं कर पाए ।
(विशेष : कविता बहुत मार्मिक है और ऊंच -नीच तथा छुआछूत जैसी कुप्रथाओं का शमन करने की प्रेरणा देती है |)
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