Hindi, asked by tommyvecctery4233, 1 year ago

ek phool ki chah ka kendriya bhav

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Answered by HridayAg0102
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प्रस्तुत पाठ ‘एक फूल की चाह’ छुआछूत की समस्या से संबंधित कविता है। महामारी के दौरान एक अछूत बालिका उसकी चपेट में आ जाती है। वह अपने जीवन की अंतिम साँसे ले रही है। वह अपने माता- पिता से कहती है कि वे उसे देवी के प्रसाद का एक फूल लाकर दें । पिता असमंजस में है कि वह मंदिर में कैसे जाए। मंदिर के पुजारी उसे अछूत समझते हैं और मंदिर में प्रवेश के योग्य नहीं समझते। फिर भी बच्ची का पिता अपनी बच्ची की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए मंदिर में जाता है। वह दीप और पुष्प अर्पित करता है और फूल लेकर लौटने लगता है। बच्ची के पास जाने की जल्दी में वह पुजारी से प्रसाद लेना भूल जाता है। इससे लोग उसे पहचान जाते हैं। वे उस पर आरोप लगाते हैं कि उसने वर्षों से बनाई हुई मंदिर की पवित्रता नष्ट कर दी। वह कहता है कि उनकी देवी की महिमा के सामने उनका कलुष कुछ भी नहीं है। परंतु मंदिर के पुजारी तथा अन्य लोग उसे थप्पड़-मुक्कों से पीट-पीटकर बाहर कर देते हैं। इसी मार-पीट में देवी का फूल भी उसके हाथों से छूट जाता है। भक्तजन उसे न्यायालय ले जाते हैं। न्यायालय उसे सात दिन की सज़ा सुनाता है। सात दिन के बाद वह बाहर आता है , तब उसे अपनी बेटी की ज़गह उसकी राख मिलती है।


इस प्रकार वह बेचारा अछूत होने के कारण अपनी मरणासन्न बेटी की अंतिम इच्छा पूरी नहीं कर पाता। इस मार्मिक प्रसंग को उठाकर कवि पाठकों को यह कहना चाहता है कि छुआछूत की कुप्रथा मानव-जाति पर कलंक है। यह मानवता के प्रति अपराध है।


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Answered by bhatiamona
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एक फूल की चाह का केन्द्रीय भाव :

एक फूल की चाह कविता सियारामशरण गुप्त द्वारा लिखी गई है| कविता का केन्द्रीय भाव  समाज में फैली छुआ-छूत जैसी प्रथा के बारे में बताया है| कविता में बताया किस प्रकार कवि को देवी माता के मंदिर में फूल लेने के लिए जाता है और  लोग उसे  अछूत और पापी कहते है और उसे मारते है|  सात दिन के लिए कारावास में डाल देते है|

कवि की पुत्री को उस समय फैली हुई महामारी की चपेट में आ गई थी| पिता ने पुत्री का बहुत इलाज करवाया ,उसको बचाने के लिए बहुत प्रयास किए|

एक दिन वह बुखार से तड़पते हुए अपने पिता से देवी माँ के प्रसाद का एक फूल उसे लाकर देने के लिए बोलती है। कवि मंदिर चला जाता है लेकिन वहाँ लोग उसे पापी और अछूत कहने लगते है| उसे मारते है| उसे 7 दिन के लिए कारावास में डाल देते है| जब वह वापिस आता है तब वह देखता उसकी बेटी उससे मिलने नहीं आई| उसकी बेटी मर चुकी थी| वह अपनी बेटी के वियोग में रोता रहा|                

     अंत में  पिता के मन में बस यही अफसोस होता रहा कि वह अपनी पुत्री को अंतिम बार गोद में भी नहीं ले पाया और न ही उसे देख पाया | अपनी बेटी की अंतिम इच्छा पूरी नहीं कर पाया , माँ देवी के प्रसाद का एक फूल भी उसे लाकर नहीं दे पाया| समाज में फैली इस प्रथा के कारण वह अपनी बेटी से नहीं मिल पाया|

          समाज में फैली यह प्रथाएँ जिसके कारण समाज कभी उन्नति नहीं कर सकता|

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