ek phool ki chah para 15 explanation
Answers
Answered by
0
hey there!...
where is the para?
Answered by
1
Answer:
दंड भोगकर जब मैं छूटा,
पैर न उठते थे घर को
पीछे ठेल रहा था कोई
भय जर्जर तनु पंजर को।
पहले की सी लेने मुझको
नहीं दौड़कर आई वह;
उलझी हुई खेल में ही हा!
अबकी दी न दिखाई वह।
व्याख्या - कवि कहता है कि जब सुखिया का पिता जेल से छूटा तो उसके पैर उसके घर की ओर नहीं उठ रहे थे। उसे ऐसा लग रहा था जैसे डर से भरे हुए उसके शरीर को कोई धकेल कर उसके घर की ओर ले जा रहा था। जब वह घर पहुँचा तो हमेशा की तरह उसकी बेटी दौड़कर उससे मिलने नहीं आई। न ही वह उसे कहीं खेल में उलझी हुई दिखाई दी।
Similar questions