ek sainik ki atmakatha nibandh hindi
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मै एक भारतीय सैनिक हु। जी हाँ, मेरी आत्मकथा रंगीन नहीं, रोमांचक है;विलास से नहीं साहस से भरी हुई है। मैं हुँ एक भूत पूर्व भारतीय सैनिक! मैंने कई लडाईओ में भाग लिया है। मेरे लिए मेरा देश ही ईश्वर है ! में कई बार युद्ध में घायल भी हुआ था। फ़िर भी हमने देश को डूबने नहीं दिया।
सैनिक का परिचय और जन्म :
मेरा जन्म काँगड़ा के पहाड़ी प्रदेश में हुआ था। हमारे इलाक़े में खेतिबाडी के लायक जमीन बहुत कम है, इसलिए बहुत से लोग सेना मै भरती हो जाते है। इसीलिए हमे बचपन से ही व्यायाम की तालीम विशेष रूप से दी जाती थी। मेरे पिता भी एक सैनिक थे और वर्षो तक सेना मै रहकर उन्होंने भारत माताकी सेवा की थी। मेरे मन में भी उनकी तरह एक सैनिक बनने की इच्छा थी। युवा होते होते मैने घुड़सवारी, तैरना, पहाड़ पर चढ़ना आदि सिख लिया था
Soldier
सैनिक की तालीम और पहला अनुभव:
आखिर एक दिन मै देहरादून की सैनिक स्कूल मै भर्ती हो गया। थोड़े दिनों मै ही मैंने काफी अच्छी सैनिक शिक्षा प्राप्त कर ली। राइफल, मशीन गन, तोप और टैंक आदि चलाने की मैने पूरी तालीम ले ली। मोटर् ट्रक ड्राइविंग मे भी मैने प्रमाण पत्र हाशिल् किया। युद्ध स्थल की कार्य वाही, फायरिंग और गोलन्दाजी का काफी अनुभव भी प्राप्त किया।
हमारी और भी कई तरीके के की तालीम आती है। मैने अपने मन में ठान ली थी की कुछ भी हो जाए मुझे मेरे देश की सेवा और रक्षा करनी ही है। में रोज अपने साथियो के साथ हँसी मजाक बहुत करता। मुझे सब कॉमेडी स्टार ही बुलाते। कॉमेडी कर के में अपने साथियों का होसला बनाए रखता और उनका मुड़ फ्रेस रखता।
आजादी के बाद मुझे सबसे पहले हैदराबाद की पुलिस कार्यवाही में निजाम की सेना का सामना करना पड़ा। इसके बाद कुछ वर्ष बड़ी शांति से गुजरे। फ़िर एकाएक चीन ने हमारी उत्तरी सीमा पर हमला कर दिया। उसका मुकाबला करने के लिए हमारे डिवीज़न को वहा भेजा गया।
बर्फ़ीले प्रदेश में हमने चौकियाँ बना ली और पड़ाव डाले। हमे आधुनिक शस्त्रों से सज्ज हजारों चीनी सैनिको का सामान करना था। एक बार हम कूछ सैनिक पहरा दे रहे थे, इतने में अचानक दुश्मन के सैनिको ने हमला बोल दिया। उस समय हमारे सारे जवान अचानक ही उठ कर लड़ने के लिए तैयार हो गए। मैने अकेले ने 25 चीनी सैनिको को मौत के घाट उतार दिया। साथ में मेरे कई साथियों ने भी चीनी सैनिको को मारा था।
उस लडाई में हमारे कुछ जवान शहीद हो गए थे। मुझे हाथ पे दो गोली लगी थी। हमने वो युद्ध जीत लिया और चीनी सैनिको को मात दे डाली थी। फ़िर मैने मेरे हाथ का ऑपरेशन करवाके वो दो गोली निकलवाई।
युद्ध विराम के बाद में अपने गाँव लौटा। मेरी माँ मुझे देखते ही खुशी के मारे पागल हो गई। पत्नी और मुन्ना दोनों बहुत प्रसन्न हुए। गाँव के लोगो को मैने अपने अनुभव सुनाए। लेकिन कुछ ही समय बाद सन् 1965 में पाकिस्तान ने हमारे देश पर आक्रमण कर दिया। देश के रक्षा यज्ञ में अपनी आहुति देने के लिए में चल पड़ा। हमने जी जान से पाकिस्तानी सैनिको का सामना किया। इस भिडंत में मेरे दाहिने पैर में गोलियां लगी, फ़िर भी तुरन्त इलाज़ किये जाने की वजह से मै ठीक हो गया। मुझे अपनी वीरता के उपलक्ष्य में भारत सरकार ने 'वीरचक्र' से विभूषित किया।
सन् 1971 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में भी मुझे भेजा गया। उस युद्ध में मैने बहुत वीरता दिखाई, पर मै बुरी तरह घायल हो गया था। मुझे महीनों तक असप्ताल में रहना पड़ा था।
अब मैने अवकाश प्राप्त कर लिया है। मै अपने गाँव में रहता हु और गाँव के लोगो की छोटी मोटी सेवा करता हु। जरूरत पड़ी तो मै अपने देश के लिए मेरी जान भी न्यौछावर कर दूँगा। अच्छा तो अब आज्ञा चाहता हु! जय भारत!
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