English, asked by sandeeppatelverma82, 11 months ago

Ek Vivek Dil kare Ek vivek Mecca essay

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Answered by Anonymous
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rhaमनुष्य बुद्धि प्रधान होने के कारण सृष्टि के अन्य प्राणियों से श्रेष्ठ और भिन्न है। बुद्धि की विशेषता ही उसे मनुष्य बनाती है। बुद्धि का कार्य विचार करना है। इसका क्षेत्र मस्तिष्क है। विचारों का उत्पादन करना बुद्धि का काम नहीं मन की क्रिया है। संकल्प पहले मन में जाग्रत होते हैं। बुद्धि के क्षेत्र में आकर वे विचार का रूप धारण करते हैं। बुद्धि की निरन्तर क्रिया शीलता के कारण हमारे मस्तिष्क में अनेक प्रकार के विचार एकत्रित हो जाते हैं। इनमें अच्छे भी होते हैं और बुरे भी। हमारे शरीर की क्रिया इन्हीं विचारों के आधीन रहती है। जब हमारी बुद्धि किसी बात को तय कर लेती है तो उसी के अनुसार शारीरिक क्रियाएँ होने लगती हैं। यह फैसला अच्छा भी हो सकता है और बुरा भी।

विचारों के जमघट में हमें यह निर्णय करना कठिन हो जाता है कि उनमें से कौन सा हित-कारक और कौन सा अहितकर, कौन सा करणीय और कौन सा त्याज्य एवं कौन से सही और कौन सा गलत है। इस स्थिति में कोई विशिष्ट शक्ति हमें निर्णय सुझाती है। मस्तिष्क की इसी निर्णायक शक्ति का नाम विवेक है। यह हमारे अन्तरात्मा की वह पुकार है जिस पर हम सत् और असत् न्याय और अन्याय तथा अच्छे और बुरे का फैसला करते हैं। उलझनों की अँधेरी घड़ियों में— चिन्ता के भयंकर क्षणों में यही विवेक हमारा पथ प्रदर्शन करता है।

जिसमें विवेक की कमी होती है वे नाजुक क्षणों में अपना सही मार्ग निश्चित नहीं कर पाते और गलत रास्ते पर चल उठते हैं जिसके कारण उन्हें पतन और असफलता के गर्त गिरकर लाँछित और अपमानित होना पड़ता है। जिनमें शक्ति का प्राधान्य होता है वे दूरदर्शी होते हैं, काम के परिणाम को समझते हैं, अपने विचारों के महत्व को जानते हैं और इसीलिए उपयुक्त मार्ग अपनाते हैं। यही शक्ति साधारण व्यक्ति को नेता, महात्मा और युग पुरुष बनाती है।

विवेक प्रत्येक व्यक्ति में जन्मजात रूप से वर्तमान रहता है। इस पर हमारे संचित और क्रियमान कर्मों की छाया का प्रभाव पड़ता है जिसके कारण वह किसी में कम और किसी में अधिक दिखाई देता है। दूसरे शब्दों में इस प्रकार भी कह सकते हैं कि हम अपने संचित एवं क्रियमान कर्मों से इतने अधिक प्रभावित रहते हैं कि विवेक की पुकार हमें ठीक से सुनाई नहीं पड़ती। यही विवेक हमारी वास्तविक मानवता का प्रतीक और सद्बुद्धि का द्योतक है। इसके अभाव में मनुष्य पशु या उससे भी गया बीता बन जाता है और वह स्वयं के लिए, समाज के लिए, राष्ट्र के लिए और अन्ततः सृष्टि के लिए एक भार एवं अभिशाप हो जाता है।

मानव होने के नाते हमारा यह प्राथमिक कर्त्तव्य है कि हम इस विवेक को जाग्रत करें और उसकी आवाज को सुनना सीखें। संसार के छोटे से छोटे और बड़े से बड़े सभी मनुष्य इसकी कृपा के लिए लालायित रहते हैं।

Answered by sanjoydas40
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yes but ek vivek dil kare
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