एकै आखर पीव का, पढ़ें सु पन्डित होइ l पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए |
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ऐकै अषिर पीव का, पढ़ै सु पंडित होइ।।
अर्थ: इन पंक्तियों द्वारा कवि ने प्रेम की महत्ता को बताया है। ईश्वर को पाने के लिए एक अक्षर प्रेम का अर्थात ईश्वर को पढ़
लेना ही पर्याप्त है। बड़े-बड़े पोथे या ग्रन्थ पढ़ कर भी हर कोई
पंडित नहीं बन जाता। केवल परमात्मा का नाम स्मरण करने से
ही सच्चा ज्ञानी बना जा सकता है। अर्थात ईश्वर को पाने के लिए सांसारिक लोभ माया को छोड़ना पड़ता है।
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