एक बिहारी - भीख मांगना - एक व्यक्ति का भीक रोज देखना - फूलो का अच्छा देना - बिखारी का फुल बेचना - मंदिर के सामने खोलना - सिख
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isme karna kya hai
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भिखारी कैसे बना व्यापारी
बहुत समय पहले की बात है . एक बार एक व्यापारी सुबह सुबह अपने ऑफिस जा रहा था. उसने देखा कि रास्ते में एक दीन हीन सा दिखने वाला आदमी बैठा था, उसके पास कुछ सूखे हुए फूल बेचने के लिए रखे हुए थे और एक हाथ में उसने अपनी टोपी उलटी पकड़ी हुई थी.
बहुत समय पहले की बात है . एक बार एक व्यापारी सुबह सुबह अपने ऑफिस जा रहा था. उसने देखा कि रास्ते में एक दीन हीन सा दिखने वाला आदमी बैठा था, उसके पास कुछ सूखे हुए फूल बेचने के लिए रखे हुए थे और एक हाथ में उसने अपनी टोपी उलटी पकड़ी हुई थी.उसी धनि व्यापारी ने अपनी जेब से दस रुपये का नोट निकला और वो नोट उस व्यक्ति की टोपी में डाल दिया और जल्दी जल्दी वहां से निकल गया. अचानक वो रुका और आधे रास्ते से वापस आकर भिखारी से बोला – माफ़ करना भाई, मैं जल्दी में हूँ इसलिए अपना खरीदा हुआ सामान लेना भूल गया और ऐसा कहकर उसने सामने रखे फूलों में से एक डहेलिया का फूल उठा लिया. उसने कहा- ये मेरा पसंदीदा फूल है. आखिरकार तुम भी मेरी तरह व्यापारी ही तो हो. ऐसा कहकर वोमुस्कराता हुआ चला गया.
बहुत समय पहले की बात है . एक बार एक व्यापारी सुबह सुबह अपने ऑफिस जा रहा था. उसने देखा कि रास्ते में एक दीन हीन सा दिखने वाला आदमी बैठा था, उसके पास कुछ सूखे हुए फूल बेचने के लिए रखे हुए थे और एक हाथ में उसने अपनी टोपी उलटी पकड़ी हुई थी.उसी धनि व्यापारी ने अपनी जेब से दस रुपये का नोट निकला और वो नोट उस व्यक्ति की टोपी में डाल दिया और जल्दी जल्दी वहां से निकल गया. अचानक वो रुका और आधे रास्ते से वापस आकर भिखारी से बोला – माफ़ करना भाई, मैं जल्दी में हूँ इसलिए अपना खरीदा हुआ सामान लेना भूल गया और ऐसा कहकर उसने सामने रखे फूलों में से एक डहेलिया का फूल उठा लिया. उसने कहा- ये मेरा पसंदीदा फूल है. आखिरकार तुम भी मेरी तरह व्यापारी ही तो हो. ऐसा कहकर वोमुस्कराता हुआ चला गया.लगभग दो साल के बाद एक दिन वो व्यापारी एक बड़े से होटल में बैठा रात का खाना खा रहा था कि अचानक से एक सुपरिधानित , रूपवान व्यक्ति उसके पास आया और उसने आपना परिचय दिया – शायद आपने मुझे पहचाना नहीं होगा ..लेकिन आप ही वो व्यक्ति हैं जिसने मेरी कुछ बनने में मदद की . मैं तो सिर्फ एक खानाबदोश फूल बेचने वाला था. आपने मुझे मेरा आत्म सम्मान वापस किया है.
बहुत समय पहले की बात है . एक बार एक व्यापारी सुबह सुबह अपने ऑफिस जा रहा था. उसने देखा कि रास्ते में एक दीन हीन सा दिखने वाला आदमी बैठा था, उसके पास कुछ सूखे हुए फूल बेचने के लिए रखे हुए थे और एक हाथ में उसने अपनी टोपी उलटी पकड़ी हुई थी.उसी धनि व्यापारी ने अपनी जेब से दस रुपये का नोट निकला और वो नोट उस व्यक्ति की टोपी में डाल दिया और जल्दी जल्दी वहां से निकल गया. अचानक वो रुका और आधे रास्ते से वापस आकर भिखारी से बोला – माफ़ करना भाई, मैं जल्दी में हूँ इसलिए अपना खरीदा हुआ सामान लेना भूल गया और ऐसा कहकर उसने सामने रखे फूलों में से एक डहेलिया का फूल उठा लिया. उसने कहा- ये मेरा पसंदीदा फूल है. आखिरकार तुम भी मेरी तरह व्यापारी ही तो हो. ऐसा कहकर वोमुस्कराता हुआ चला गया.लगभग दो साल के बाद एक दिन वो व्यापारी एक बड़े से होटल में बैठा रात का खाना खा रहा था कि अचानक से एक सुपरिधानित , रूपवान व्यक्ति उसके पास आया और उसने आपना परिचय दिया – शायद आपने मुझे पहचाना नहीं होगा ..लेकिन आप ही वो व्यक्ति हैं जिसने मेरी कुछ बनने में मदद की . मैं तो सिर्फ एक खानाबदोश फूल बेचने वाला था. आपने मुझे मेरा आत्म सम्मान वापस किया है.मित्रों, वो ही व्यक्ति था जिसे उस व्यापारी ने उस दिन दस रूपये देकर एक फूल लिया था. आज मैं अपने आप को व्यापारी कह सकता हूँ..जैसा कि आपने उस दिन कहा था. वो सिर्फ दान नहीं था जो उस दिन धनि व्यापारी ने उस गरीब आदमी को दिया था. उसने उस गरीब का आत्म सम्मान और गरिमा वापस की थी जो कि पैसे से कही अधिक मूल्यवान और जरूरी था.
बहुत समय पहले की बात है . एक बार एक व्यापारी सुबह सुबह अपने ऑफिस जा रहा था. उसने देखा कि रास्ते में एक दीन हीन सा दिखने वाला आदमी बैठा था, उसके पास कुछ सूखे हुए फूल बेचने के लिए रखे हुए थे और एक हाथ में उसने अपनी टोपी उलटी पकड़ी हुई थी.उसी धनि व्यापारी ने अपनी जेब से दस रुपये का नोट निकला और वो नोट उस व्यक्ति की टोपी में डाल दिया और जल्दी जल्दी वहां से निकल गया. अचानक वो रुका और आधे रास्ते से वापस आकर भिखारी से बोला – माफ़ करना भाई, मैं जल्दी में हूँ इसलिए अपना खरीदा हुआ सामान लेना भूल गया और ऐसा कहकर उसने सामने रखे फूलों में से एक डहेलिया का फूल उठा लिया. उसने कहा- ये मेरा पसंदीदा फूल है. आखिरकार तुम भी मेरी तरह व्यापारी ही तो हो. ऐसा कहकर वोमुस्कराता हुआ चला गया.लगभग दो साल के बाद एक दिन वो व्यापारी एक बड़े से होटल में बैठा रात का खाना खा रहा था कि अचानक से एक सुपरिधानित , रूपवान व्यक्ति उसके पास आया और उसने आपना परिचय दिया – शायद आपने मुझे पहचाना नहीं होगा ..लेकिन आप ही वो व्यक्ति हैं जिसने मेरी कुछ बनने में मदद की . मैं तो सिर्फ एक खानाबदोश फूल बेचने वाला था. आपने मुझे मेरा आत्म सम्मान वापस किया है.मित्रों, वो ही व्यक्ति था जिसे उस व्यापारी ने उस दिन दस रूपये देकर एक फूल लिया था. आज मैं अपने आप को व्यापारी कह सकता हूँ..जैसा कि आपने उस दिन कहा था. वो सिर्फ दान नहीं था जो उस दिन धनि व्यापारी ने उस गरीब आदमी को दिया था. उसने उस गरीब का आत्म सम्मान और गरिमा वापस की थी जो कि पैसे से कही अधिक मूल्यवान और जरूरी था.इसी तरह मित्रों अगर हमारे अन्दर आत्म सम्मान है तो हम जीवन में कुछ भी हासिल कर सकते हैं. और अगर हम किसी का आत्म सम्मान उसे वापस दिलाने में कुछ मदद कर सकते हैं तो ये हमारी सबसे बड़ी उपलब्द्धि होगी.