एक बार एक लकड़हारा नदी के किनारे लकड़ी काट रहा था अचानक उसकी लकड़ी नदी में गिर गई
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एक दिन, एक लकड़हारा जंगल में लकड़ी काटने के लिए आया था। वह लकड़हारा नदी किनारे के पास एक पेड़ पर चढ़कर पेड़ की शाखाये काट रहा था की तभी अचानक उसकी कुल्हाड़ी निचे नदी में गिर गई। लकड़हारा बहुत रोने लगा क्युकी उसके पास सिर्फ एक ही कुल्हाड़ी थी और उसी से वह पेड़ काटता था। लकड़हारा परेशान होकर नदी किनारे बैठा था, तभी नदी से एक देवी निकली। नदी की देवी को देखकर लकड़हारा डर गया और कहने लगा, "कौन हो तुम?" नदी की देवी बोली, "डरो मत, मैं इस नदी की देवी हूँ। मैं तुम्हारी मदद करुँगी। बताओ मुझे क्या हुआ।" लकड़हारा बोला, "मैं एक गरीब लकड़हारा हूँ। लकड़ी काटकर गुजारा करता हूँ। आज मैं जब लकड़ी काट रहा था तभी मेरी कुल्हाड़ी नदी में गिर गई। मेरे पास सिर्फ एक ही कुल्हाड़ी थी। अब हम अपना गुजारा कैसे करेंगे? क्या आप मेरी मदद करेगी?" नदी की देवी बोली, "तुम चिंता मत करो, मैं अभी तुम्हारी कुल्हाड़ी नदी के निचे से ले आती हूँ।" यह कहकर वह देवी नदी के भीतर चली गई।
कुछ समय बाद, वह देवी नदी के बाहर आई एक सोने की कुल्हाड़ी के साथ। और कहने लगी, "ये लो तुम्हारी कुल्हाड़ी। यही है न तुम्हारी कुल्हाड़ी?" लकड़हारा बोला, "नहीं नहीं, यह मेरी कुल्हाड़ी नहीं है।" देवी बोली, "क्या यह नहीं है तुम्हारी कुल्हाड़ी? पर यह तो सोने की है।" लकड़हारा बोला, "मैं एक गरीब लकड़हारा हूँ, मैं भला सोने की कुल्हाड़ी कहाँ से लाऊँगा?" यह मेरी कुल्हाड़ी नहीं है।" यह सुनकर देवी फिर से नदी के भीतर चली गई।
कुछ समय बाद, देवी नदी से बाहर आई। और बोली, "लो तुम्हारी कुल्हाड़ी। यह चांदी कि है, यह जरूर तुम्हारी होगी।" लकड़हारा बोला, 'नहीं, यह कुल्हाड़ी भी मेरी नहीं है। लगता है आप मेरी मदद नहीं कर सकती। कोई बात नहीं। मेरी कुल्हाड़ी तो लोहे की थी।" तभी देवी बोली, "मैं इस बात से बहुत खुश हूँ की सोने चांदी की कुल्हाड़ी देकर भी तुमने मुझसे झूट नहीं कहा।" यह बोलकर देवी नदी के भीतर गई और उसकी लोहे की कुल्हाड़ी उसे देते हुए कहा, "मैं तुमसे बहुत खुश हूँ, इसलिए इस लोहे की कुल्हाड़ी के साथ साथ तुम यह सोने और चांदी की कुल्हाड़ी भी रखलो। मेरी तरफ से यह तुम्हारे लिए तौफा है।
लकड़हारे ने यह बात अपने दोस्तों को सुनाई। उनमे से एक दोस्त उसकी बातें सुनकर बहुत खुश हो गया। दूसरे दिन, वह ख़ुशी ख़ुशी उसी जगह पर लकड़ी काटने के लिए चला गया। लकड़ी काटते काटते उसने खुद से ही अपनी कुल्हाड़ी निचे नदी में गिरा दी। वह उसी लकड़हारे की तरह परेशान होकर रोने लगा। तभी नदी से देवी निकली। और उससे कहा, "तुम क्यों रो रहेहो ?" उस आदमी ने कहा, "कौन है आप।" देवी बोली, " मैं इस नदी की देवी हूँ। मैं तुम्हारी मदद करुँगी। बताओ क्या हुआ?" आदमी बोला, "मैं एक गरीब लकड़हारा हूँ। लकड़ी काटकर अपना घर चलाता हूँ। लकड़ी काटते समय मेरी कुल्हाड़ी नदी में गिर गई। कुल्हाड़ी के बिना मेरे और मेरे परिवार का क्या होगा? क्या आप मेरी मदद करेगी?" देवी बोली, "तुम चिंता मत करो, मैं अभी तुम्हारी कुल्हाड़ी लेकर आती हूँ।"
फिर वह देवी नदी के भीतर चली गई कुल्हाड़ी लेने के लिए। कुछ समय के बाद देवी नदी से बाहर आई सोने की कुल्हाड़ी के साथ। सोने की कुल्हाड़ी देखकर उस आदमी की आंखे चमकने लगा और कहने लगा, "यही तो है मेरी कुल्हाड़ी। आपका धन्यवाद इस कुल्हाड़ी को ढूंढने के लिए।" तभी देवी कहने लगी, "मैं जानती हूँ यह कुल्हाड़ी तुम्हारी नहीं है। तुम तो बड़े बेईमान इंसान हो। अब तो तुम्हे कुछ नहीं मिलेगा। तुम्हारी कुल्हाड़ी भी तुम्हे वापस नहीं मिलेगी।" यह कहकर देवी नदी के भीतर चली गई। और वह आदमी अब सचमे रोने लगा और पछताता रहा |
Explanation:
लकड़हारा क्यों रो रहा है तू