एक बूढ़े किसान की आत्मकथा
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मैं एक किसान हूं ।बड़े सवेरे हल-बैल लेकर मैं अपने खेतों में चला जाता हूं और दिन भर वहां खेती के काम में जुटा रहता हूं। दोपहर तक लगातार वहां परिश्रम करता हूं। भोजन और थोड़ा आराम करके पुनः काम में लग जाता हूं शाम तक सख्त मेहनत करता हूं। वैसाख जेठ की कड़ी धूप हो या फिर पूष अगहन की जाड़े की रात, अपने प्यारे खेतों के लिए मैं दिन देखता हूं ना रात और सदैव अपनी मेहनत से अपनी फसलों को उगाता हूं । चिलचिलाती धूप हो या बिजली की कड़कड़ाहट और वर्षा की झड़ियां या फिर सूखे जैसी स्थितियां क्यों न हो मैं अपने खेतों का ख्याल रखने के लिए उन्हें अपने खून -पसीने से सीचता रहता हू। मैं एक भारतीय किसान हूं मेरा रहन-सहन बड़ा सीधा सादा और सरल है । एक छोटी सी झोपड़ी में ,जो की मिट्टी की बनी हुई है उसी में मैं अपने परिवार के साथ रहता हूं । जहां पर जीवनोपयोगी वस्तुएं भी पर्याप्त मात्रा में प्राप्त नहीं होती फिर भी संतोष के साथ में अपना जीवन व्यतीत करता हूं । मैं प्रकृति के पालने में पलने वाला एक पात्र कृषक हूं । साहस और आत्म सम्मान की मुझ में कमी नहीं है और परिश्रम तथा सेवा के लिए मैं सदैव तत्पर रहता हूं । मुझे पीढ़ी दर पीढी जो शिक्षा मिली है या जिन प्रथाओं का हमारे पूर्वजों ने पालन किया है उन पर मेरा भी कहीं ना कहीं विश्वास है, इसलिए मैं भी जादू- टोना, भूत- प्रेत आदि बातों में विश्वास कर लेता हूं। वैसे तो मैं कोई और नशीली चीज़ का सेवन नहीं करता हूँ, किंतु कभी-कभी तंबाकू खा लेता हूं।
देश को आजादी मिलने के बाद हम किसानों की दशा में काफी सुधार हुआ है जहां पर हम दिनभर शरीर से ही सारे काम कर –करके थक के चूर हो जाते थे , वहां पर अब सरकार ने कई मशीनें, उत्तम बीज तथा रासायनिक खाद द्वारा हमारी बहुत मदद की है । ग्राम पंचायतें भी इसमें भागीदार है और अब बैंकों ने भी हमें लोन देकर हमारी कई समस्याओं को समाधान ढूंढा है । अब हम खेती अवश्य करते हैं किंतु तकनीक में बदलाव आने के कारण हमारे पास कई प्रकार के ऐसे यंत्र है जो हमारे काम को कम समय में अधिक योग्यता पूर्वक पूरा कर देते हैं । पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहे साहूकारों के ऋण से भी हमें छुटकारा मिला है । यह हमारे लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि है इसके लिए हम सरकार के आभारी हैं। जन समुदाय हमें अन्नदाता कहता है ।अन्नदाता तो परमात्मा है । हम तो केवल निमित्त है इसीलिए जब मैं अपनी लहलहाती फसलों को देखता हूं तो अपनी सारी थकान ,पीड़ाएं ,परिश्रम एवं खेती के लिए किया जाने वाला हर श्रम हर पुरुषार्थ भूल जाता हूं, और इन लहलहाती फसलों को देखकर मुझे उसी तरह खुशी मिलती है जिस तरह एक भक्त को अपनी साधना पूरी होने के पश्चात उसकी फल प्राप्ति से होती है।
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thx bro for the above answer