Hindi, asked by SahilPradhan, 1 year ago

एक भूतपूर्व इरादा निर्धारित किया जाता है और यह झूठी उम्मीदों को छोड़ने का समय है। एक झूठी उम्मीद क्या है और अपनी इच्छाओं को वहां से सेट करें आप अक्सर ब्रह्मांड को चीजों को जारी नहीं करते लेकिन इस बार, भावनाओं को बढ़ने देना अच्छा है। explanation

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Answered by mchatterjee
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झूठ और पापों के मध्य संबंध के बारे में महापुरुषों के कथनों में बारम्बार संकेत किया गया है। उदाहरण स्वरूप हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि, किसी को धर्म पर ईमान के स्वाद का उस समय तक पता नहीं चल सकता जब तक कि वह झूठ को छोड़ न दे, यहां तक कि हंसी मज़ाक में भी।

निश्चित रूप से ईमान, झूठ व दोमुखे पन के साथ एक ह्रदय में नहीं रह सकता। पैगम्बरे इस्लाम ने झूठ को अनेकेश्वरवाद की श्रेणी में रखा है। वे कहते हैं कि क्या मैं आप लोगों को महापाप के बारे में बताऊं? सब से बड़ा पाप अनेकेश्वरवाद, माता पिता से दुर्व्यवहार और झूठ बोलना है। झूठ का एक अन्य प्रभाव विश्वास गंवाना होता है। हमें भली भांति मालूम है कि किसी भी समाज की पूंजी, एक दूसरे पर विश्वास होता है और जो वस्तु इस पूंजी का नाश करती है वह झूठ और धोखा है। इसी प्रकार एक झूठा व्यक्ति किसी भी दशा में अन्य लोगों का विश्वस्त नहीं हो सकता। इस्लामी शिक्षाओं में झूठ से बचने और सच बोलने पर जो इतना बल दिया गया है उसका मूल कारण भी यही है। इस्लामी शिक्षाओं व निर्देशों में कहा गया है कि महान इस्लामी हस्तियों ने झूठों सहित कुछ विशेष प्रकार के लोगों से मेल जोल रखने से कड़ाई से रोका है। क्योंकि झूठे लोगों पर भरोसा नहीं किया जा सकता। हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि झूठे से मित्रता करने से बचो कि वह मृगतृष्णा की भांति होता है दूर की वस्तु को तुम्हारी नज़र में निकट और निकट वस्तु को तुम्हारे लिए दूर कर देगा।

जो ईश्वर के चिन्हों में विश्वास नहीं रखते और असली झूठे वही लोग हैं। इस आयत का कारण यह है कि कभी कभी कुरआने मजीद में कुछ निर्देशों में बदलाव आ जाता था और पुराने नियम के स्थान पर नया नियम आ जाता था। जिसे बहाना बना कर पैगम्बरे इस्लाम के शत्रुओं ने उन पर यह आरोप लगाया कि वे झूठ बोलते हैं या फिर यह कहते थे कि पैगम्बरे इस्लाम का कोई शिक्षक है जो उन्हें यह आयातें सिखाता है। कुरआने मजीद इस प्रकार के सभी आरोपों का उत्तर देते हुए कहता है कि पैगम्बर, ईश्वरीय संदेशों को जो उन्हें रूहुलकुदुस नामक विशेष फरिश्ते से प्राप्त होता है, लोगों तक पहुंचाते हैं और उनकी हर बात से सच्चाई व सत्यता झलकती है। झूठ वह लोग बोलते है जिन्हें ईश्वर में विश्वास नहीं होता। अर्थात, ईमान और झूठ एक साथ नहीं रह सकता। और वास्तविक ईमान वाले लोगों की ज़बान पर सच के अलावा कुछ नहीं आता।
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