एक छात्रावास में औसतन प्रत्येक छात्र प्रतिदिन 15 लिटर दूध लेता है। प्रत्येक दिन
कुल 308 लीटर दूध छात्रावास में उपयोग होता है, तो छात्रों की संख्या ज्ञात कीजिए।
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एक लीटर बोतल बंद पानी खरीदने के लिए आपको 20 रुपए खर्च करने पड़ते हैं, इतने ही पैसे में किसान एक लीटर गाय का दूध बेचता है। यही दूध शहरों में दुकानों पर 44-45 रुपए प्रति लीटर बिकता है। साफ है कि किसानों का हक मारा जाता है, शायद इसीलिए सड़कों, खेतों और आपकी कॉलोनियों में छुट्टा गोवंश की संख्या बढ़ती जा रही है।
और जब आप छुट्टा गोवंश को देखकर किसानों को कोसते हैं तो ये भी समझ लीजिए कि एक गाय को औसतन 10 किलो भूसा रोज चाहिए होता है, उसकी कीमत अगर 5 रुपए प्रति किलो भी हो तो किसान को रोज घाटा होता है। जबकि इसमें दूसरे खर्च शामिल नहीं हैं।
मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर के गांव मेलकलमा के रहने वाले बंटी पाराशर के पास 9 गायें थीं, जिनमें 6 गाय दूध दे रही थी बावजूद इसके उन्होंने अपनी सभी गायें एक गो आश्रम केंद्र को मुफ्त में दान कर दी। इंदौर से करीब 40 किलोमीटर दूर सांवेर तहसील के बंटी पराशर पिछले कई वर्षों से डेयरी चला रहे थे, गाय दान करने की वजह पूछने पर वे कहते हैं, "हमारे यहां मंडी में गाय के दूध की कीमत 20-21 रुपए लीटर है। इससे ज्यादा तो लागत आ जाती है। लगातार घाटा हो रहा था, इसलिए सब गायें हटा दीं।"
बंटी जैसे किसानों की संख्या भारत में लाखों में होगी। अब जिनके पास गाय बची हैं वो अपने काम के तरीके बदल रहे हैं। इंदौर से करीब 900 किलोमीटर दर यूपी के बाराबंकी के डेयरी किसान सुधीर मोहन अब अपना पूरा दूध शहर की कालोनियों पहुंचाते हैं।
बाराबंकी के हैदरगढ़ में 100 से ज्यादा गिर और हॉल्स्टीन फ़्रिजीयन प्रजाति की गाय पालने वाले सुधीर मोहन बताते हैं, "फॉर्म की कॉस्ट ऑफ प्रोडक्शन देखेंगे तो एक लीटर गाय के दूध के पीछे कम से कम 35 रुपए का खर्च आता है। मेरी डेयरी में रोजाना 700 लीटर दूध का उत्पादन होता है। दूध की कंपनियां और सोसायटी में गाय के दूध के मिलते हैं सिर्फ 24-25 रुपए, लेकिन वो बताती हैं कि 27-28 रुपए दिए जा रहे। इतनी कम कीमत में डेयरी फार्मस को फायदा हो ही नहीं सकता। इसीलिए मैं अपने दूध को शहर में सीधे उपभोक्ताओं तक पहुंचाता हूं।"