'एक फूल की चाह' एक कथात्मक कविता है. इसकी कहानी को संक्षेप में लिखिए|
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प्रस्तुत पाठ गुप्त जी की कविता 'एक फूल की चाह' का एक छोटा सा भाग है। यह पूरी कविता छुआछूत की समस्या पर केंद्रित है। कवि कहता है कि एक बडे़ स्तर पर फैलने वाली बीमारी बहुत भयानक रूप से फैली हुई थी। उस महामारी ने लोगों के मन में भयानक डर बैठा दिया था।
Explanation:
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इक समय था जब सब हँसी मज़ाक से रहा करते। तब उस गाव में एक पिता अपनी बेटी को खेलने बहार जाने को लेकर चिंतित था। तब एक दिन उनके पड़ोस में रहने वाली चाची घर आके उसके पिता से कहती की न जाने पड़ोस के गाव में इक बीमारी फ़ैल गयी है जो पुरे परिवार को उजड़ दे मतलब खत्म कर दे। तब उसके पिता और भी चिंतित हो जाते हैं। कुछ समय बाद जब वह लड़कई खेल कर वापस आ जाती है तो वह ठण्ड से काप रही थी । उसे अचानक बुखार चढ़ जाता हैं । तो वह अपने पिता के गॉड में सर रखकर उनसे मंदिर में माँ के चरण की एक फूल की मांग करती है । तो वह लाचार अपनी बेटी की मांग पूरी करने के लिए उसके पिटा मंदिर जाते हैं। वह मंदिर शैल शिखर के ऊपर विस्तीर्ण विशाल था। स्वर्ण -कलश सरसिज था। पूरा मंदिर दीप और धुप से अमोदित था। देवी के भक्त सब देवी आस्था और आराधना में मगन थे। मेरे मुह से निकला पतित तारिणी पाप हारिणि माता तेरी जय जय तब न जानें किस बाल ढलक में मंदिर में पुजारी ने माता को फूल अर्पित करके प्रसाद दे रहा था तब भूल गया की ये फूल जाकर अपनी बेटी को दे दूँ । तभी किसीने कहा न जाने ये अछूत कैसे अंदर आया ?तब दरोगा ने पकड़ लिया और जेल में दाल दिया । जब में दंड भोगकर छूटा तब मन में दर सा लगता था पेर न उठते थे घर को मन में घबराहट से रहती । घर के पास आया तो नहीं आई वह भागते ।नहीं वह खेलति दिखाई दी।जब उसे देखने गया मरघट तो बंधू नै ही पहले फुक चुके थे। दिल कह उठा हाय !! मेरी कोमल बच्ची हो गयी राख की ढेरी । आखरी बार न ले सका उसे गोद में और नहीं प्रसाद का फूल दे सका में।
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