एक फूल की चाह
is kavita ko ek story ke rup me likiye
एक फूल की चाह (काव्य का कथा रूपांतरण)
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चाह नहीं, मैं सुरबाला केगहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंधप्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं सम्राटों के शव परहे हरि डाला जाऊँ,
चाह नहीं देवों के सिर परचढूँ भाग्य पर इठलाऊँ,
मुझे तोड़ लेना बनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक!
मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने,
जिस पथ पर जावें वीर अनेक!
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