एक गाँव में ऋत्विक नाम का लड़का रहता था ।
वह बहुत गरीब था। गाँव के पास 'पुस्तक मेला' लगा
था। उसने माँ से कहा, "मैं भी मेला देखने जाऊँगा।"
उसकी माँ बोली, "देखो, घर में कोई बड़ा नहीं है, तुम
अकेले कैसे जाओगे इतनी दूर ? बेटा, मेला देखने की
जिद छोड़ दो। चलो दूध पी लो।" अपनी माँ की बात
सुनकर ऋत्विक उदास हो गया और एक पेड़ के नीचे
जा बैठा।
अचानक उसकी दृष्टि दूर पेड़ों के पीछे गई, जहाँ
बहुत तेज रोशनी थी । वह उठकर वहाँ गया । वहाँ
सुनहरे पंखों वाली एक परी खड़ी थी। ऋत्विक ने हैरान
होकर उस परी से पूछा, "तुम कौन हो ?" वह बोली,
"मैं परी हूँ लेकिन तुम यहाँ उदास क्यों बैठे हो ?"
परी का प्रश्न सुनकर ऋत्विक की आँखों में आँसू
आ गए । वह बोला, “मैं अपने दोस्तों के साथ पुस्तक
मेला देखना और पुस्तकें खरीदना चाहता हूँ। यह
कहकर ऋत्विक खामोश हो गया । तब परी बोली,
"इसमें दुख की क्या बात है ? यह समझ लो, तुम्हारी
मदद करने के लिए ही मैं आई हूँ। ऐसा मैं तभी करूंगी,
जब तुम मेरी परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाओगे।'
'
"कौन-सी परीक्षा है ?"ऋत्विक ने पूछा । परी
ने कहा, "बता दिया तो परीक्षा कैसी?
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