एक हदन रणहविजय कको उसकके स्कसूलि मम भकषण दकेनके कके ललिए कहिक जकतक हिहै। रणहविजय ककहहिन्दद इतनद अच्छद नहिहीं। कलिकम यहि जकनतक हिहै और झट एक अच्छक-सक भकषण ललिखि अपनके दकोस्त कको दके दकेतक हिहै। रणहविजय प्रथम पपुरस्ककर पकतक हिहै। 'इसकके बकद दकोननों कके बदच कक सघभकहवित सघविकद तहैयकर ककलजए
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सजा काटने के पश्चात किशोरीलाल की मनोदशा काफी बिगड़ चकी थी। वह अपने उजड़े हुए घर-परिवार को देखकर अशान्त हो गया था। उसने अपनी बाबी, अपने बच्चों के कुपोषण को देखा। इससे वह एकदम घबड़ा गया। उसने लोगों से होने वाले अनादर और उपेक्षा को देखा। घर के घोर अभाव को देखा। इन सब दुखों को देखकर वह काँप गया। उसके बाप-दादा को पुराना मकान कर्ज से दब चुका था। उसे बेचकर वह वहाँ से भाग खड़ा हुआ और दूसरे शहर को चला गया।
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