Hindi, asked by anshulnirmalme, 4 months ago

एक कामकाजी बच्चे का साक्षात्कार लें

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Answered by Laraleorapathi
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Explanation:

असंगठित महिला श्रमिकों और बच्चों की देखभाल ... को छ न ले और खुद को ... साक्षात्कार लिया गया उनके द्वारा ...

Answered by pushpendrayadav12009
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Answer:

एक कामकाजी बच्चे का साक्षात्कार लें

Explanation:

कामकाजी बच्चों के जीवन की परतों को खोलें तो उनमें बच्चों का दर्द, कठिनाई, उनके सपने और चिन्ताएँ साफ दिखाई देते हैं। भोपाल में ही हज़ारों की संख्या में ऐसे बच्चे हैं जो श्रम और पढ़ाई के बीच झूल रहे हैं।

इन बच्चों का जीवन कई परतों में चल रहा होता है। एक तरफ घर में पढ़ाई का कोई माहौल नहीं है। पढ़ाई की बुनियादी ज़रूरतें भी पूरी नहीं हो पा रही हैं। दूसरी तरफ स्कूल के अन्दर न कोई सम्मान और वातावरण सेना के अनुशासन-सा सख्त एवं मनोबल को तोड़ने वाला है। भागते-दौड़ते काम की जगह पर जाते हैं तो मालिक फटकार लगाता है कि काम पर इतनी देर से आया है, बड़ा अफसर बन रहा है। अगर स्कूल में देर हुई तो शिक्षक डाँटते हैं। बच्चे के साथ न तो समाज में न्यायोचित व्यवहार होता है, और न स्कूल में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल पाती है जिसके लिए वह इतनी मशक्कत कर रहे हैं।

श्रम के साथ पढ़ाई करने वाले बच्चे

1. मंगला की उम्र 8 साल है, वह गोंड आदिवासी है। दो साल पहले अपने परिवार के साथ रायपुर (छत्तीसगढ़) के पास एक गाँव में रहती थी। वहाँ एक बिजली परियोजना के आ जाने से, इन्हें वहाँ से विस्थापित होना पड़ा। अब दो साल से वह भोपाल के श्यामनगर में रहती है। पास के ही सरकारी स्कूल में वह पढ़ने जाती है। सुबह 5 बजे जब इस उम्र के बच्चे सो रहे होते हैं, मंगला दस नम्बर मार्किट में कचरा बीनने जाती है। उसने भोपाल में आकर ही यह काम किया है। मंगला दुखी होकर कहती है, “पहले ये काम अच्छा नहीं लगता था पर अब ठीक है।” 10 नम्बर से थैले में कबाड़ और रद्दी भरकर 12 नम्बर बेचकर आठ बजे घर आती है। पानी भरती है और माँ के साथ दो जगह बर्तन माँजने चली जाती है। मंगला ग्यारह बजे स्कूल आ जाती है। उसे स्कूल में पढ़ना अच्छा लगता है। मंगला हँसकर कहती है, “अभी मुझे अच्छे से पढ़ना नहीं आता।”

“क्यों नहीं आया अभी तक?”

इस प्रश्न का उत्तर भोलेपन से देते हुए कहती है, “जब हम भोपाल आए तो खोली ही नहीं मिली, तो कभी माता मन्दिर के पास तो कभी सूखीसेवनिया में रहने लगे। ऐसे में पहले जो पढ़ना आता भी था तो वो भूल गई। स्कूल में किताबें दो दिन पहले ही मिली हैं। अब पढ़ रही हूँ। मेडम भी पढ़ना सिखा रही हैं। शाम को स्कूल से जाने के बाद घर का काम करती हूँ और हनुमान मन्दिर भीख माँगने चली जाती हूँ जिससे रात के खाने की दिक्कत नहीं आती है।” वह बतलाती है कि बड़ी होकर बड़ा आदमी बनना चाहती हूँ।

“यह सब काम मैं मेडम से छुपकर करती हूँ। मेडम को पता लगता है तो डाँटती हैं। वह कहती हैं कि तुम केवल पढ़ो।”

2. दूसरी कहानी पारदी समुदाय के बच्चों से जुड़ी हुई है। पारदी समुदाय के बच्चों के पास जन्म प्रमाण पत्र नहीं हैं और इसके चलते उन्हें स्कूलों में प्रवेश मिलने में परेशानी आती है। पारदी समुदाय का होने से उन्हें स्कूल के साथ-साथ समाज से भी ज़लील और अमानवीय व्यवहार का शिकार होना पड़ता है। अपने ही सहपाठी उन्हें चोर के बच्चे कहकर चिढ़ाते हैं। बच्चे बताते हैं कि कहीं भी आसपास चोरी होने पर पुलिस उनके माँ-बाप को उठाकर ले जाती है, मार-पीट करती है, पूछताछ करती है और कहती है कि हम जाति से ही चोर हैं। ऐसे माहौल में बच्चे स्वयं को कितना प्रताड़ित और असुरक्षित महसूस करते होंगे।

3. तीसरे वाकये में एक मज़दूर का बेटा राज है जो सातवीं कक्षा तक तो अव्वल आता रहा, पर माँ की मौत के कारण उसे पढ़ाई छोड़नी पड़ी। दो छोटे भाई-बहनों की देखभाल के लिए वह कमाने निकल गया। कक्षा सातवीं तक बेहतर पढ़ाई करने वाला बच्चा, काम की दुनिया में खप रहा है। स्कूल जाते बच्चों को लालायित नज़रों से देख अपने को सांत्वना देता है कि छोटे भाई-बहन को ज़रूर पढ़ाएगा। राज स्कूल में वापस दाखिल होना चाहे तो स्कूल उसे कैसे मदद कर सकता है?

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