Social Sciences, asked by Anonymous, 2 months ago

एक लोकतांत्रिक देश में किसीएक लोकतांत्रिक देश में किसी व्यक्ति को प्राप्त मूलभूत अधिकार बताइए ​

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Answered by Anonymous
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Answer:किसी भी लोकतांत्रिक देश की संवैधानिक व्यवस्था में नागरिकों और व्यक्तियों के सर्वांगीण विकास के लिये कुछ मूलभूत अधिकारों की व्यवस्था की गई है। स्वतंत्रता से पूर्व औपनिवेशिक शासन के दौरान भारतीय लोगों के साथ किया गया अमानवीय व्यवहार, भारत में जातिगत व्यवस्था के अंतर्गत व्याप्त भेदभाव तथा स्वतंत्रता के दौरान होने वाले धार्मिक दंगों ने मानवीय गरिमा को छिन्न-भिन्न कर दिया था। प्रत्येक व्यक्ति एक-दूसरे को संदेह की दृष्टि से देखने लगा था। ऐसी स्थिति में संविधान निर्माताओं के समक्ष देश की एकता-अखंडता, मानवीय गरिमा को स्थापित करने तथा लोगों में परस्पर विश्वास बहाल करने की चुनौती थी। इस चुनौती को स्वीकार करते हुए संविधान निर्माताओं ने सार्वभौमिक अधिकारों की व्यवस्था की। संविधान के भाग-3 में अनुच्छेद 12 से 35 तक उपलब्ध अधिकारों को मूल अधिकारों की संज्ञा दी गई।

Explanation:

मूल अधिकार से तात्पर्य

मूल अधिकारों से तात्पर्य राजनीतिक लोकतंत्र के आदर्शों की उन्नति से है। ये अधिकार देश में व्यवस्था बनाए रखने के साथ ही राज्य के कठोर नियमों के विरुद्ध नागरिकों को स्वतंत्रता प्रदान करते हैं। ये विधानमंडल द्वारा पारित कानून के क्रियान्वयन पर तानाशाही को मर्यादित करते हैं। इनके प्रावधानों का उद्देश्य कानून का राज स्थापित करना है न कि व्यक्तियों का।

संविधान द्वारा बिना किसी भेदभाव के प्रत्येक व्यक्ति के लिये मूल अधिकारों की गारंटी दी गई है। इनमे प्रत्येक व्यक्ति के लिये समानता, सम्मान, राष्ट्रहित और राष्ट्रीय एकता को समाहित किया गया है।

ये विधि के मूल सिद्धांत हैं। ये ‘मूल’ इसलिये भी हैं क्योंकि व्यक्ति के चहुंमुखी विकास (भौतिक, बौद्धिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक) के लिये आवश्यक है।

संविधान में प्रदत्त मूल अधिकार

समता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18)

स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22)

शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23-24)

धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25-28)

संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29-30)

संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32)

मूल अधिकारों की विशेषताएँ

मूल अधिकार वाद योग्य हैं। राज्य उन पर युक्तियुक्त प्रतिबंध लगा सकता है। हालाँकि प्रतिबंधों के औचित्य का निर्धारण न्यायालय द्वारा ही किया जाता है।

ये सरकार के एकपक्षीय निर्णय के विरुद्ध उपलब्ध हैं। हालाँकि उनमें से कुछ निजी व्यक्तियों के विरुद्ध भी उपलब्ध हैं।

इनमें से कुछ नकारात्मक विशेषताओं वाले होते हैं, जैसे-राज्य के प्राधिकार को सीमित करने से संबंधित, जबकि कुछ सकारात्मक होते हैं, जैसे-व्यक्तियों के लिये विशेष सुविधाओं का प्रावधान।

ये स्थायी नहीं हैं। संसद संविधान संशोधन के माध्यम से इनमें कटौती या कमी कर सकती है।

राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान (अनुच्छेद 20 व 21 को छोड़कर) इन्हें निलंबित किया जा सकता है।

इन्हें सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गारंटी व सुरक्षा प्रदान की जाती है।

मूल अधिकारों का महत्त्व

ये देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापित करते हैं।

ये वैयक्तिक स्वतंत्रता के रक्षक हैं।

देश में विधि के शासन की व्यवस्था करते हैं।

सामाजिक समानता एवं सामाजिक न्याय की आधारशिला रखते हैं।

ये अल्पसंख्यकों एवं समाज के कमज़ोर वर्गों के हितों की रक्षा करते हैं।

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