Hindi, asked by vatsaldwi, 16 days ago

एक मौलिक कहानी लिखिए जिस कहानी का अंत इस वाक्य से होना चाहिए "अंत में मैंने पुरूस्कार प्राप्त कीया"​

Answers

Answered by avikagupta247
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Explanation:

मानव जीवन दुर्लभ है। मानव जीवन की सार्थकता कुछ कर गुजरने में है। मनुष्य तो स्वभाव से ही परोपकारी जीव है। दूसरों के कष्टों को देखकर हम प्रभावित होते हैं और उन्हें दूर करने या कुछ कम करने के भाव हृदय में अवश्य उत्पन्न होते हैं। मुझमें इस भावना का बीज मेरे पिताजी ने बोया था। मेरे पिताजी सरकारी स्कूल में इतिहास पढ़ाते हैं। मैं भी उसी स्कूल की आठवीं कक्षा का छात्र हूँ। हमारा गाँव छोटा-सा था। वहाँ कच्चे घर थे। पक्के मकान बहुत कम थे। पक्की सड़कें भी नहीं थीं। अस्पताल के नाम पर एक-दो कमरों वाला एक घर था, जिसमें एक वृद्ध डॉक्टर थे। नाम या मोहनराव। हमारा यह सरकारी ( स्कूल भी कुछ बड़ा न था। पूरे स्कूल में मात्र दो अध्यापक हो

थे। एक मेरे पिताजी और दूसरे मास्टर राजाराम गाँवों में अधिकांश लोग अनपढ़ थे और खेती करते थे। गाँव के 8-10 घरों में दूरदर्शन था। जहाँ स्कूल की छुट्टी के बाद हम सब जमा हो जाते और कार्टून देखते थे। कार्टून के बीच में आने वाले विज्ञापनों को भी हम बड़े शौक से देखते थे। मेरी नजर और सोच एक विज्ञापन पर टिक गई, वह विज्ञापन

शौचालय के बारे में था। "शौचालय" एक नया विचार एक नयी सोच थी, मेरे लिए। हमारे गांव में शौचालय नहीं था। शौचालय न होने के कारण लघु शंका अथवा नित्यकर्म के लिए घर से बाहर ही जाना पड़ता था।

मोदी जी ने शौचालय और उसकी स्वच्छता व महत्ता के बारे में

"मन की बात" में बताया। यह सब जानकर मैंने पिताजी से बात

की, तो उन्होंने छोटा बच्चा समझकर बात को टाल दिया।

मैंने मन ही मन यह संकल्प कर लिया की गांव में शौचालय जरूर बनायेंगे और खुले में शौच नहीं जायेंगे। मैने गाँव के पंचों से भी बात की। पर फिर वही हुआ। काका ने कहा अभी तेरे खेलने की उम्र है। इन सब बातों में मत पड़। मन फिर भी न माना ।जिलाधीश को गाँव और शौचालय निर्माण का निवेदन करते हुए एक पत्र लिखा। पत्र का कोई जवाब नहीं आया। पता नहीं चल रहा था कि मुझे आगे क्या करना चाहिए। पिताजी से इस बारे में बात की। उन्होंने आशा की लौ जगायी। उन्होंने कहा,

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