एक मनुज संचित करता है,
अर्थ पाप के बल से,
और भोगता उसे दूसरा,
भाग्यवाद के छल से।
नर-समाज का भाग्य एक है,
वह श्रम, वह भुजबल है,
जिसके सम्मुख झुकी हुई-
पृच्ची, विनीत नभ-तल है।
जिसने श्रम जल दिया उसे
पीछे मत रह जाने दो,
विजीत प्रकृति से पहले
उसको सुख पाने दो।
न्यस्त प्रकृति में है।
वह मनुज मात्र का धन है,
धर्मराज! उसके कण-कण का
अधिकारी जन-जन है।
डॉ.रामधारी सिंह दिनकर
Answers
पूरा प्रश्न : उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए l
A. यह पद्यांश किस कविता से लिया गया है?
B. नर समाज का भाग्य क्या है?
C. किसने पृथ्वी और आकाश पर विजय प्राप्त की है?
D. पहले सुख पाने का अधिकार श्रम करने वालों को क्यों मिलना चाहिए?
E. पद्यांश किस वर्ग के लोगों के बारे में है?
उत्तर : A. यह पद्यांश कण-कण का अधिकारी नामक कविता से लिया गया है I
B. नर समाज का भाग्य और कुछ नहीं केवल परिश्रम अर्थात् परिश्रम है। नर समाज का यह परिश्रम देखने पर धरती और रसातल सब प्रणाम करेंगे।
C. नर समाज के परिश्रम रूपी भाग्यनी पृथ्वी और आकाश पर विजय प्राप्त कर ली है जिसके परिणामस्वरूप वे नतमस्तक होकर उसे प्रणाम करते हैं l
D. इस प्रकृति में जो उपलब्ध है वह और कुछ नहीं बल्कि मनुष्य का परिश्रम रूपी धन है। हे धर्मराज! जनता इसके कण-कण की स्वामिनी है। इसलिए जो मेहनत करते हैं उन्हें इसका आनंद लेने का अधिकार है।
E. यह पद्यांश मुख्य रूप से परिश्रम करने वाले लोगों के बारे में बताता है I हमारे (मानव) जीवन में श्रम का बड़ा महत्व है। श्रम सफलता की कुंजी है। श्रम ही सफलता प्राप्त करने और सुखी जीवन जीने का एकमात्र आधार है। परिश्रम करने से ही सभी कार्य सिद्ध होते हैं।
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