Hindi, asked by maddisailucky4, 5 months ago


एक मनुज संचित करता है,
अर्थ पाप के बल से,
और भोगता उसे दूसरा
भाग्यवाद के छल से।
जो कुछ न्यस्त प्रकृति में है,
वह मनुज मात्र का धन है,
धर्मराज उसके कण
अधिकारी जन - जन है।।
कण का
प्रश्न:-
11. मनुष्य अर्थ कैसे संचित करता है?
12. संचित किये गए धन - दौलत को कौन भोगता है?
13. मनुज मात्र का धन क्या है?
14. कण-कण का अधिकारी कौन है?
15. यह कवितांश के कवि का नाम क्या है?​

Answers

Answered by XxCharmingGuyxX
5

question ⤵️

एक मनुज संचित करता है,

अर्थ पाप के बल से,

और भोगता उसे दूसरा

भाग्यवाद के छल से।

जो कुछ न्यस्त प्रकृति में है,

वह मनुज मात्र का धन है,

धर्मराज उसके कण

अधिकारी जन - जन है।।

कण का

प्रश्न:-

11. मनुष्य अर्थ कैसे संचित करता है?

12. संचित किये गए धन - दौलत को कौन भोगता है?

13. मनुज मात्र का धन क्या है?

14. कण-कण का अधिकारी कौन है?

15. यह कवितांश के कवि का नाम क्या है?.

Answer ⤵️

  • मनुष्य पाप के बल से अर्थ संचित करता हे।
  • कोइ दुसरा छल से सचिंत किए गए धन का भोग करता हे।
  • न्यस्त प्रकृति ही मनुज मात्र का धन है
  • जन-जन धर्मराज के कन कन का अधिकारी हे।

Similar questions