एक निबंध अगर मैं जंगल का राजा होता तो मैं अपनी जिम्मेदारियों का पालन कैसे करता एक निबंध
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प्रस्तावना
जंगल पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधनों में से एक है। पेड़ो का विशाल पैमाने पर विस्तार ही वन कहलाता है। पौराणिक काल में ऋषि मुनि जंगलो में बैठकर तपस्या किया करते थे। पहले पृथ्वी के बहुत बड़े हिस्से में वन को गिना जाता था।
परन्तु दुर्भाग्यवश अब मनुष्य ने अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए वनो को बहुत पहले से ही काटना शुरू कर दिया है। वनो को सहज कर रखना बेहद आवश्यक है, क्योकि यह हमारी प्राकृतिक पूंजी है।
वन शब्द की उतपत्ति और विभिन्न परते
वन शब्द की उत्पत्ति फ्रांसीसी शब्द से हुयी है, जिसका अर्थ है विशाल पैमाने पर पेड़ -पौधों का उपलब्ध होना। कुछ लोगो का यह कहना था की जंगल शब्द लैटिन शब्द फोरेस्ट से लिया गया है, जिसका तात्पर्य है ‘खुली लकड़ी’।
यह शब्द उस वक़्त का था जब राजा अपने शाही शिकार क्षेत्रों को सम्बोधित करने के लिए उपयोग करते थे। जंगल का निर्माण विभिन्न परतो द्वारा होता है। यह सारी परतें वन को पकड़ कर रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। यह परतें कुछ इस प्रकार है, वन की जमीन, अंडर स्टोरी, कैनोपी और एमजेन्ट परत।
वनो के प्रकार
वनो के कई प्रकार है जैसे उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन, उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन, उष्णकटिबंधीय कांटेदार वन, पर्वतीय वन और अनूप वन। सदाबहार वन उत्तर पूर्वी क्षेत्र और अंदमान द्वीप समूह में पाया जाता है।
ऐसे वनो में रोजवुड, महोगनी, ऐनी, फ़र्न जैसे प्रजातियां पाए जाते है। अर्ध सदाबहार वन में साइडर, होलक, कैल जैसे वृक्ष पाए जाते है। उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन को मानसूनी वन भी कहा जाता है, क्यों कि इसी मौसम में यह वन हरे- भरे हो जाते है।
इन वनो को आद्र और शुष्क वनो में विभाजित किया गया है। आद्र पर्णपाती वन उत्तर पूर्वी राज्यों, हिमालय की तलहटी और ओडिसा जैसे क्षेत्रों में पाए जाते है। इन वनो में साल, सागौन, शीशम, सेमल, कुसुम और चंदन जैसे बहुमूल्य वृक्ष पाए जाते है।
शुष्क पर्णपाती वन उत्तर प्रदेश और बिहार के मैदानी इलाको में पाए जाते है। इसमें तेन्दु, पलास, अमलतास, बेल जैसे मुख्य वृक्ष पाए जाते है। उष्ण कटिबंधीय कांटेदार वन पंजाब, हरियाणा, गुजरात और मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में पाए जाते है। ऐसे वनो में बबूल, बेर, कांटेदार झाड़ियाँ, नीम, पलास जैसे वनस्पति उपलब्ध है।
पर्वतीय वनो में पहाड़ो की ऊंचाई वृद्धि होने के साथ उसकी वनस्पतियां भी अलग -अलग प्रकार की होती है। उत्तर पर्वतीय वन में जुनिपर, पाईन, बर्च जैसे वृक्ष पाए जाते है। दक्षिणी पर्वतीय वन पश्चिमी घात और नीलगिरी की पहाड़ियों में पाए जाते है।
अनूप वन को मैंग्रोव वन भी कहा जाता है। ऐसे वनो में सुन्दर वन डेल्टा, अंदमान निकोबार दिप समूह और डेल्टाई भागो में पाए जाते है। भारत के कई राज्य जैसे अरुणाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिसा, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र है। जहां देश की सबसे अधिक वन भूमि पायी जाती है।
भारत में कई राष्ट्रिय उद्यान यानी नेशनल पार्क और अभारण्य है, जहाँ कई हेक्टार्स में वनभूमि फैली हुयी है। अक्सर पर्यटक यहां घूमने आते है। जीव -जंतुओं की सुरक्षा के लिए यहां कई दिशा -निर्देश पालन किये जाते है।
कई जगहों से लोग यहां वनो का आनंद लेने की लिए आते है। सुन्दर बन, गिर, जिम कॉर्बेट, रणथम्बोर, काज़ीरंगा नेशनल पार्क, मानस नेशनल पार्क इत्यादि वन भूमि क्षेत्र के उदाहरण है।
इससे पृथ्वी की तापमान ज़रूरत से ज़्यादा बढ़ जाता है, जिसकी वजह से कई प्रकार की भयानक समस्याएँ उत्पन्न होती है। सूरज की रोशनी पृथ्वी के लिए आवश्यक है, लेकिन सूरज से निकल रही अत्यधिक रेडिएशन्स जब धरती से बाहर नहीं निकल पाती है तब ग्लोबल वार्मिंग की समस्या उतपन्न होती है।
निरंतर बढ़ता हुआ वायू प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाता है। ग्लोबल वार्मिंग से इतनी अधिक गर्मी बढ़ रही है कि, अंटार्टिक पर जमी बर्फ पिघल रही है और समुद्र में जल स्तर बढ़ रहा है।
बड़े – बड़े ग्लेसियर पिघलने की वजह से जल में बढ़ोतरी हो रही है। जिसके कारण सारे तटीय क्षेत्र डूब जाने की कगार पर खड़े हो गए है। अगर वृक्ष ना काटे जाए, तो ग्लोबल वार्मिंग को कम किया जा सकता है। जंगल पृथ्वी के वायुमंडल में सम्पूर्ण संतुलन बनाये रखता है।
वनो की कटाई को रोकने के लिए ज़रूरी उपाय
वृक्षों की अत्यधिक कटाई को रोकने के लिए लोगो को जागरूक करने की आवश्यकता है। बहुत पहले से लोगो को पौधे लगाने के लिए प्रोत्साहित कर, हर पैमाने पर पुरज़ोर कोशिश की जा रही है।
पेड़ो को लगाने की प्रक्रिया को वृक्षारोपण कहा जाता है। वृक्षारोपण को अंग्रेजी में अफ्फोरेस्टशन कहा जाता है। वन महोत्सव जुलाई के प्रथम हफ्ते में मनाया जाता है। इसके माध्यम से लोगो में पेड़ लगाने की भावना को विकसित किया जाता है। विद्यालय के छात्र भी इसमें भाग लेते है।
लोगो में यह जागरूकता फैलाने की ज़रूरत है कि बिना ठोस कारण के कोई भी व्यक्ति पेड़ नहीं काट सकता है। अगर फिर भी पेड़ काटना पड़े, तो व्यक्ति को दो पौधे लगाने की आवश्यकता है।
जितना पेड़ हम लगाएंगे, उतना ही हम प्रकृति और पर्यावरण को नष्ट होने से बचा सकते है। हरी -भरी और खुशहाल प्रकृति का निर्माण वृक्षों पर निर्भर करता है। मनुष्य को पेड़ लगाकर पुण्य कमाना चाहिए। पेड़ो के बैगर हम जिन्दगी की कल्पना नहीं कर सकते है। वनो की कटाई पर रोक लगाना अत्यंत आवश्यक है।
निष्कर्ष
भारत सरकार और वन विभाग ने वनो के संरक्षण के लिए कई नियम बनाये है। लेकिन यह हमारा फ़र्ज़ बनता है कि हम वनो के संरक्षण के तरफ अपनी जिम्मेदारी भी निभाए। छात्र जीवन से ही वृक्षारोपण के महत्व को समझाना चाहिए।
छात्रों को पेड़ -पौधे लगाने के प्रति समय -समय पर प्रोत्साहित करना चाहिए। जंगल सिर्फ मनुष्य जाति के लिए ही नहीं बल्कि समस्त जीव जंतुओं की लिए भी ज़रूरी है।
पेड़ो का निरंतर कटाव मनुष्य जाति और प्रकृति की लिए भीषण गंभीर समस्या है। प्रकृति में संतुलन और समस्त जीव जंतुओं की सुरक्षा के लिए हमे एक जुट होना होगा। पृथ्वी पर हरियाली को जीवित रखने के लिए वृक्षारोपण निरंतर रूप से करने की ज़रूरत हैं.
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अपनी विषयवस्तु व शैली के आधार पर यह कौटिल्य के अर्थशास्त्र के बाद की रचना प्रतीत होती है ..