एक नवजात शिशु की देखभाल करते समय किन-किन बातों पर बल दिया जाना चाहिए?
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शिशुओं एवं छोटे बच्चों का पोषण बहुत लम्बे समय से वैज्ञानिकों एवंयोजनाकारों का ध्यान आकृष्ट कर रहा है। इसका सीधा सा कारण यह है कि मानव जीवन के प्रथम वर्ष के दौरान मानव विकास दर सर्वाधिक होती है और बच्चे की पौषणिक स्थिति निर्धारित करने में शिशु आहार पद्धति समें स्तनपान एवं पूरक आहार शामिल हैं की प्रमुख भूमिका होती है। कुपोषण एवं शिशु आहार के बीच संबंध को भली-भांति सिद्ध किया जा चुका है I हाल ही के वैज्ञानिक साक्ष्य यह दर्शाते हैं कि प्रति वर्ष पांच से कम आयु में वाले बच्चों में से 60% बच्चों की मृत्यु का कारण कुपोषण होता है। इनमें से दो तिहाई से भी अधिक बच्चों की मृत्यु का कारण अनुपयुक्त आहार पद्धतियां हैं और इनकी मृत्यु 1 वर्ष से कम आयु में हो जाती है। विश्व भर में केवल 35% शिशुओं को जीवन के प्रथम चार माह के दौरान माँ का दूध प्राप्त होता है और अधिकतर शिशुओं का पूरक आहार बहुत पहले या देर से आरम्भ हो पाता है। यह पूरक आहार पोषाहारीय दृष्टि से अपर्याप्त एवं असुरक्षित होता है। शिशु अवस्था एवं प्रारंभिक बाल्यावस्था में गलत आहार पद्धतियां सामाजिक आर्थिक विकास के लिए एक बड़ा खतरा है क्योंकि क्षीण होता है, इस महत्वपूर्ण आयु वर्ग के दौरान स्वस्थ विकास की प्राप्ति एवं इस बनाये रखने के मार्ग में ये पद्धतियां अत्यधिक गम्भीर रुकावट हैं।