"एकै संग धाए नँदलाल औ गुलाल दोऊ,
दृगनि गए जु भरि आनंद मढे नहीं।
धोय-धोय हारी, 'पद्माकर'तिहारी सौंह,
अब तौ उपाय एक चित्त में चढ़े नहीं।
कैसी करौं, कहाँ जाऊँ, कासे कहूँ, कौन सुनै,
कोऊतो निकासो, जासै दरद बढ़े नहीं।।"
(1) पाठ का नाम एवं कवि का नाम।
(2) पद्यांश की व्याख्या।
(3) इसमें किस पर्व के प्रसंग की चर्चा है?
Answers
Answer:
पाठ का नाम एवं कवि का नाम।
Answer:
(1)पद्माकर
(2)व्याख्या :
आपने वसंता के दृष्टांतों को पढ़ा और सीखा कि कैसे पद्माकर के गीत मन को घेर लेते हैं।
निशान। बसंत की सुंदरता का वर्णन करते हुए एक ही बात को बार-बार दोहराना पड़ता है।ऐसा लगता है कि कोई वस्तु है जिसका वर्णन करना संभव नहीं है, यह सिर्फ 'वस्तु अतिरिक्त' है |
वसंत उत्साह की जयंती के साथ जुड़ा हुआ है, जिसे आप भी अच्छी तरह से जानते हैं। उसे
इसे कहते हैं होली। इसका दूसरा नाम है- ग्रबर। वैसे उन लोकगीतों को भी कहा जाता है
जो होली में गाए जाते हैं। आइए देखें कि पद्माकर फागो को कैसे चित्रित करते हैं
हैं| पहले एक-दो बार पूरे गीत को पढ़कर खुद को समझने की कोशिश करें।
आइए मिंस्ट्रेल की कल्पना को कुछ गहराई से समझते हैं। एक गोपिका का पूरा गीत
कथन है कि उसकी समस्याएँ क्या हैं? इसे समझने के लिए होली के एक रिवाज को फ्लैश करें
करो अबीर-गुलाल को हवा में उछाला। ये उड़ता गुलाल है गोपीका का
यह आंख में चला गया है। उनके साथ नंदलाल भी उनकी आंखों में बस गए हैं। मान लीजिए क्या समस्याएं हैं? आँखों में गुलाल ही गिरे तो उसे भी दूर करने का उपाय क्या है?
हो सकता था? आंख धोकर हार गई है गोपी, ऐसे नहीं मिल रही सफलता
क्यों? उसे क्या परेशान कर रहा है? कैसे कहें कि किसने ध्यान दिया? इसमें क्या कहानी छिपी है? क्या गोपी की बात विश्वसनीय लगती है?
(3)फाग
Explanation:
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