Hindi, asked by PiyushKumar6618, 6 months ago

"एकै संग धाए नँदलाल औगुलाल दोऊ,
दृगनि गए जु भरि आनंद मट्टै नहीं।
धोय-धोय हारी, पद्माकर'तिहारी सौंह,
अब तौ उपाय एकचित्त में चढ़े नहीं।
कैसी करौं, कहाँ जाऊँ, कासे कहूँ, कौन सुनै,
कोऊ तो निकासो, जासै दरद बढ़े नहीं।।"
(1) पाठ का नाम एवं कवि का नाम।
(2) पद्यांश की व्याख्या
(3) इसमें किस पर्व के प्रसंग की चर्चा है?​

Answers

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माई री मैं कासे कहूँ पीर अपने जिया की

माई री...

पी की डगर मैं बैठे मैला हुआ री मेरा आंचरा

मुखड़ा है फीका-फीका नैनों में सोहे नहीं काजरा

कोई जो देखे वैया प्रीत का वासे कहूँ माजरा

पी की डगर मैं बैठे मैला हुआ री मेरा आंचरा

लट में पड़ी कैसी बिरहा की माटी

माई री मैं कासे...

आँखों में चलते फिरते रोज़ मिले पिया बावरे

बैयाँ की छैयां आके मिलते नहीं कभी सांवरे

दुःख ये मिलन का लेके काह करूँ कहाँ जाऊं रे

आँखों में चलते फिरते रोज़ मिले पिया बावरे

पाकर भी नहीं उनको मैं पाती

माई री मैं कासे...

ओस नयन की उनके मेरी लगी को बुझाए ना

तन मन भीगो दे आके ऐसी घटा कोई छाये ना

मोहे बहा ले जाए ऎसी लहर कोई आये ना

ओस नयन की उनके मेरी लगी को बुझाए ना

पड़ी नदिया के किनारे मैं प्यासी

माई री मैं कासे...

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माई री मैं कासे कहूँ पीर अपने जिया की

माई री...

पी की डगर मैं बैठे मैला हुआ री मेरा आंचरा

मुखड़ा है फीका-फीका नैनों में सोहे नहीं काजरा

कोई जो देखे वैया प्रीत का वासे कहूँ माजरा

पी की डगर मैं बैठे मैला हुआ री मेरा आंचरा

लट में पड़ी कैसी बिरहा की माटी

माई री मैं कासे...

आँखों में चलते फिरते रोज़ मिले पिया बावरे

बैयाँ की छैयां आके मिलते नहीं कभी सांवरे

दुःख ये मिलन का लेके काह करूँ कहाँ जाऊं रे

आँखों में चलते फिरते रोज़ मिले पिया बावरे

पाकर भी नहीं उनको मैं पाती

माई री मैं कासे...

ओस नयन की उनके मेरी लगी को बुझाए ना

तन मन भीगो दे आके ऐसी घटा कोई छाये ना

मोहे बहा ले जाए ऎसी लहर कोई आये ना

ओस नयन की उनके मेरी लगी को बुझाए ना

पड़ी नदिया के किनारे मैं प्यासी

माई री मैं कासे...

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