एक साधु थे। उनका नाम था मोहन जी। वे झोपड़ी बनाकर रहते थे। वे दूध- रोटी खाते थे। कचौड़ी छूते तक न थे। चौकी पर सोते थे। चादर उनका बिछौना था। झोपड़ी के आसपास पेड़-पौधे लगे थे। साधु ने कोयल, मोर, तोता, कुकुर, गाय और कछुआ पाल रखा था। उनको कोयल की बोली बड़ी मीठी लगती थी।
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- एक साधु थे। उनका नाम था मोहन जी। वे झोपड़ी बनाकर रहते थे। वे दूध- रोटी खाते थे। कचौड़ी छूते तक न थे। चौकी पर सोते थे। चादर उनका बिछौना था। झोपड़ी के आसपास पेड़-पौधे लगे थे। साधु ने कोयल, मोर, तोता, कुकुर, गाय और कछुआ पाल रखा था। उनको कोयल की बोली बड़ी मीठी लगती थी।
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एक साधु थे। उनका नाम था मोहन जी। वे झोपड़ी बनाकर रहते थे। वे दूध- रोटी खाते थे। कचौड़ी छूते तक न थे। चौकी पर सोते थे। चादर उनका बिछौना था। झोपड़ी के आसपास पेड़-पौधे लगे थे। साधु ने कोयल, मोर, तोता, कुकुर, गाय और कछुआ पाल रखा था। उनको कोयल की बोली बड़ी मीठी लगती थी।
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