एक स्वचारित कविता लिखे पक्षी पर।
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Answer:
छी बोला
संध्या की उदास बेला, सूखे तरुपर पंछी बोला!
आँखें खोलीं आज प्रथम, जग का वैभव लख भूला मन!
सोचा उसने-”भर दूँ अपने मादक स्वर से निखिल गगन!“
दिन भर भटक-भटक कर नभ में मिली उसे जब शान्ति नहीं,
बैठ गया तरु पर सुस्ताने, बैठ गया होकर उन्मन!
देखा अपनी ही ज्वाला में
झुलस गई तरु की काया;
मिला न उसे स्नेह जीवन में,
मिली न कहीं तनिक छाया।
सोच रहा-”सुख जब न विश्व में, व्यर्थ मिला ऐसा चोला।“
संध्या की उदास बेला, सूखे तरु पर पंछी बोला।
Explanation:
यह मन पंछी सा
दिशाहीन यह मन पंछी सा
आस की टहनी पर जब बैठा।
जग मकड़ी के जैसे आकर
पंखों पर इक जाल बुन गया।
सूरज की सतरंगी किरणें
ख़्वाव दिखा कर चली गईं।
सांझ ढली, सूरज डूबा
मैं जग के हाथों हार गया।
पक्षी भी रोते हैं
उसके दोस्त ने उसे समझाया
मत रो, फफक-फफककर मत रो
पक्षी क्या कभी रोते हैं?
उसने जवाब दिया, तो क्या मैं पक्षी हूँ?
फिर उसने कुछ रूककर कहा-
लेकिन तुझे क्या पता…
पक्षी भी रोते हैं, रोते हैं, बहुत रोते हैं
और वह फिर से रोने लगा।
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