Hindi, asked by therainbowboy55555, 9 days ago

एक समय वृषभानु दुलारी के हार विहार में टूट गए बावन सेज,तिरसठ आँगन सत्तर ग्वालिन लूट लिए अर्ध गए इत में उत में पिय पंचम भाग चुराय लियो सखी बोलो कितने मोतिन माल गुहे.’​

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Answered by ishulove7245
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Answered by aryab674
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सुनील के नासिका छिद्रों पर नारी देह,सस्ते पाउडर और बालों में लगाए पैराशूट तेल की मिली जुली गंध ने अधिकार कर लिया.हवास पर नशा सा छा गया.चुआए कच्चे ताड़ी सा.

उसने नज़रें बचा कर देखा-सुरो संस्कृत की किताब पर गर्दन गाड़े कुछ कर रही थी. उसके होंठ खुलते फड़फड़ाते बंद हो रहे थे.शायद वो कोई फ़िल्मी गाना गुनगुना रही थी और तल्लीनता से किताब के पहले पेज पर क़लम से अपना नाम गोद रही थी-डॉट डॉट डॉट.

‘अनाघ्रातं पुष्पं किसलयमलूनं कररूहै.’

यह अनसुंघा पुष्प,अनछुए कोपल,अनचखा मधु विधि बरमा ने ना जाने किस चंडूक के लिलार में लिखा है हो राम.

सबके अंदर अपने अपने अलग कालिदास बज रहे थे और कम से कम बीस दुष्यंतों की कामकल्पनासेवित एक शकुंतला अपना नाम गोदने की प्रक्रिया में लिप्त आख़िरी नुक़्ता लगा रही थी.

‘कहाँ धेयान है हो सुनील तोहार?पढ लिख के कोई हमार खर्ची चलाओगे का बबुआ?’ मास्साब ने बेहद मुलायमियत से पूछा.

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