एक तिहाई शब्दों में सार लिखिए
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मैं नदी हूँ। बचपन से ही पिता के लाड़-प्यार ने मुझमें स्वच्छंदता की प्रवृत्ति भर दी थी। पिता की गोद से निकलकर कल कल करती हुई पंथी
गति से आगे बढ़ती गई। सूर्य, चंद्र और तारों ने अपने प्रकाश से मुझको राह दिखाई। कभी-कभी छोटे पत्थरों ने मेरी राह रोकने का प्रयास किया
किंतु वे मेरे प्रवाह के आगे टिक नहीं पाए। हिमशिखरों को पीछे छोड़ती, मैदानी समतल भागों से होती, अनेक गाँवों को हरा 'परा करती है।
विस्तृत और गहरी हो गई हूँ। जब मुझपर आक्रोश सवार होता है, तो मेरा विवेक नष्ट हो जाता है और मैं कगारों को तोड़ती हुई , खेतों खलिहानों
में घुस जाती हूँ। मेरी अबाध गति के कारण लोग त्राहि-त्राहि करने लगते हैं। इसी तरह बिना रुके मैं अपनी मंजिल तय करती हुई समुद्र में जा मिलती हूँ।
-thank you
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