एक ताल के पारतंत्र और मकस्थल के पारश मे मनर
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करे।
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Explanation:
देश की स्वाधीनता के लिए जो उद्योग किया जा रहा था, उसका वह दिन निस्संदेह अत्यंत बुरा था| जिस दिन, स्वाधीनता के क्षेत्र में खिलाफत, मुल्ला, मौलवी और धर्माचार्यों को स्थान दिया जाना आवश्यक समझा गया| एक प्रकार से उस दिन हम ने स्वाधीनता के क्षेत्र में, एक कदम पीछे हट कर रखा था | अपने उसी पाप का फल आज हमें भोगना पड़ रहा है |देश को स्वाधीनता के संग्राम ही ने मौलाना अब्दुल बारी और शंकराचार्य को देश के सामने दूसरे रूप में पेश किया, उन्हें अधिक शक्तिशाली बना दिया और हमारे इस काम का फल यह हुआ की इस समय हमारे हाथों ही से बढ़ाई इनकी और इनके से लोगों की शक्तियां हमारी जड़ उखाड़ने और देश में मजहबी पागलपन, प्रपंच और उत्पात का राज्य स्थापित कर रही है
घर सुघर गोबर-लिपे आँगन सँवारे।
सरल, सीधे और सच्चे लोग सारे,
यह पुराना मस्त हुआ और पिलखन,
यह हमारा गाँव, प्यारा गाँव है।
झूमते हैं बाग, उपवन खेत प्यारे,
सभी चाचा और ताऊ हैं हमारे।
गाँव की चौपल का यह नीम बूढा,
पिता की भी याद से पहले खड़ा है।
सघन छाया में बिछी हैं खाट कितनी,
इन जड़ों पर बैठकर मैंने पढ़ा है।
ये गली-गलियार सँकरे और टेढ़े,
जहाँ चर्चे आपसी झगड़े-बखेड़े।
खिलखिलाहट हास्य से भरपूर पनघट,
यह उफनती जिंदगी पागल अखाड़े
उधर वृक्षों से घिरा पोखर सुहाना,
भर दुपहरी नित जहाँ डुबकी लगाना।
आज भी अच्छी तरह हैं याद वे दिन,
काग़ज़ों की किश्तियाँ घंटों चलाना।
और पोखर निकट शिव मंदिर पुराना,
शिखर जिसका आज भी लगता सुहाना
ये नवेली क्यारियाँ, चलते हुए हल,
घिरे बादल, बीज का बोना-बुआना।
भूलने की चीज़ क्या छाँव है!
यह हमारा गाँव, प्यारा गाँव है।