"एक तिनका कविता का सारांश अपने प्रमों में लिथिए ।
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व्याख्या - एक तिनका कविता में कवि अयोध्या प्रसाद हरिऔध जी ने मनुष्य को घमंड न करने की नसीहत दी है। कवि कहता है कि एक बार वह बहुत घमंड से भरा हुआ था। किसी को अपना समकक्ष समझता नहीं था। एक दिन वह अपने छत की मुंडेर पर खड़ा हुआ था।
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