एक दिन जब अध्यापक ने मेरी प्रशंसा की पर आठ से दस वाक्य पर अनुच्छेद
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अध्यापक दिवस का दिन है और खुद एक अध्यापक होते हुए शायद इस बात को ज्यादा गहराई से महसूस किया जा सकता है कि अध्यापक होना और अध्यापक होते हुए हमेशा अपने आसपास की परिस्थितियों से सीखना समझना कितना चुनौती पूर्ण होता है। याद कीजिए अपने उन अध्यापकों को, जिन्हें याद रखने की कोई वजह आपके पास है। हमें या तो बहुत दुखद अनुभव वाले या बहुत सुखद अनुभव वाले अध्यापक ही याद होगें। सुखद अनुभव वाले अध्यापक वे ही रहे जिन्होंने हमें जीवन के निराश पलों में हौंसला और हिम्मत दी। जिन्होंने किसी भी मुसीबत को मेहनत और आत्मविश्वास से हल करना सिखाया। उन्होंहने हमारी हार को भी एक शिक्षा का रूप दिया और सदा कर्म करते रहने और अपने लक्ष्य को हर समय दिमाग में रखने का तरीका बताया।
तब हम विद्यार्थी थे और कई बार उनकी बातों को ज्यादा अहमियत भी नहीं देते थे, पर जीवन के चुनौती भरे क्षणों में उनकी कही गई बातें हमारे मन मस्तिष्क में गूंजती रही और हमें तब पता चला कि उनकी कही गई बातें कोरा प्रवचन नहीं थी बल्कि उनके भोगे हुए अनुभव थे। आज हम अपने कार्यक्षेत्र में, घर में, समाज में एक दुसरे के साथ कई बार शिक्षक विद्यार्थी वाला रोल बांटते हैं। समय अब हर पल सीखते रहने का है। कई बार नई पीढ़ी भी पुरानी पीढ़ी के लिए शिक्षक साबित होती है बस सहजता से उन्हें स्वीकार करने का गुण होना चाहिए।
शिक्षक होने के नाते आज हमें लगता है कि अब शिक्षा का स्तर ज्यादा सामाजिक हो चुका है। जो शिक्षा जीवन से नहीं जुडती वह लुगदी से अधिक कुछ नहीं। हम अपने छात्रों को जो सपने दिखा रहे हैं या उनके मन में भविष्य के प्रति एक उम्मीद भर रहे हैं, उन्हें लेकर खुद भी कई बार शंका और चिंता मन में पैदा होती है। आज जो हताशा, असफलता और निराशा से ओत-प्रोत बेकारी का वातावरण देश में बना हुआ है, रोजगार के हालात बद से बदतर हो रहे हैं और नौजवानों के बीच विदेश जाने की होड़ मची है। उस बीच एक अध्यापक की जिम्मेवारी और ज्यादा बढ़ जाती है। बाकी आजकल का सिनेमा, मीडिया जिस प्रकार के विचार नौजवान विद्यार्थियों में रोपित कर रहा है उनके जंजाल से भी अध्यापक का मुकाबला है।
इससे पहले कि असभ्य और हिंसक विचार नौजवानों के लिए आदर्श बने या उनके दिलो दिमाग पर कब्जा कर ले, अध्यापक को छात्रों में अच्छे साहित्य और सामाजिकता की समझ भी विकसित करनी होगी। आज हमारे अपने देश में शिक्षा का मूलभूत ढांचा लार्ड मैकाले के ढांचे से कुछ हद तक मुक्त हुआ है या हो रहा है। पर समाज में जिस प्रकार संबंधों की नैतिकता और अपने देश वासियों के प्रति गैर जिम्मेदारी की घटनाएं बढ़ी हैं, वो चिंता का विषय है।
शिक्षा का उद्देश्य ही एक अच्छा और जिम्मेदार नागरिक बनाना है और इसके साथ आर्थिक तौर पर एक मजबूत लाइफ स्टाइल देना है। पर हम देख रहे हैं कि किस प्रकार उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में अध्यापक स्वयं आंदोलन रत है। ठेका या संविदा भर्ती के नाम पर उनका शोषण किस प्रकार हो रहा है, उनके धरने प्रदर्शनों पर लाठी चार्ज या दर्ज हो रहे केस की खबरें आम हो रही हैं। दिन ब दिन शिक्षण संस्थानों की बढ़ती गिनती और
एक दिन जब अध्यापक ने मेरी प्रशंसा की पर अनुच्छेद
Explanation:
- एक दिन विद्यालय में मेरी अध्यापिका जी ने जब सबके सामने मेरी प्रशंसा की उस समय मैं अचंभित रह गई।
- जब अध्यापिका जी ने मेरी प्रशंसा की तो मैं बहुत खुश हुई।
- सभी विद्यार्थियों को मेरे लिए तालियां बजाते देख मेरा मन बहुत प्रसन्न हुआ।
- अध्यापिका जी ने मेरी प्रशंसा मेरे पढ़ाई में अच्छे अंकों को लेकर की थी।
- चूँकि मैं कभी भी पढ़ाई में ध्यान नहीं देती थी इसलिए मेरी अध्यापिका जी ने इस बार मुझ पर बहुत ध्यान दिया और उनके ध्यान की वजह से ही मेरे अच्छे अंक आए।
- जब विद्यालय में सबके सामने मेरी प्रशंसा हुई तो मुझे और प्रोत्साहन मिला कि मैं कक्षा में और अच्छे अंक से कक्षा उत्तीर्ण करूं।
- जब अध्यापिका जी ने मेरी प्रशंसा की तो मैं फूले नहीं समा रही थी।
- इस समय मैं यह भी सोच रही थी कि मुझे भविष्य में भी उनकी उम्मीदों पर खरा उतरना है।
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अगर समय चक्र रुक जाये तो
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