Hindi, asked by manandarak4574, 2 months ago

एक दिन संध्या समय, होस्टल से दूर मैं एक कनकौआ लूटने बेतहाशा दौड़ा जा रहा था। आँखे>आसमान की ओर थीं और मन उस आकाशगामी पथिक की ओर, जो मंदगति से झूमता पतन की ओर>चला आ रहा था, माना कोई आत्मा स्वर्ग से निकलकर विरक्त मन से नए संस्कार ग्रहण करने जो रही>हो । बालकों की पूरी सेना लग्गे और झाड़दार बाँस लिए इनका स्वागत करने को दौड़ी आ रही थी।>किसी को अपने आगे-पीछे की खबर न थी। सभी मानो उस पतंग के

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Answered by architasingh151
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Explanation:

एक दिन संध्या समय, होस्टल से दूर मैं एक कनकौआ लूटने बेतहाशा दौड़ा जा रहा था। आँखे>आसमान की ओर थीं और मन उस आकाशगामी पथिक की ओर, जो मंदगति से झूमता पतन की ओर>चला आ रहा था, माना कोई आत्मा स्वर्ग से निकलकर विरक्त मन से नए संस्कार ग्रहण करने जो रही>हो । बालकों की पूरी सेना लग्गे और झाड़दार बाँस लिए इनका स्वागत करने को दौड़ी आ रही थी।>किसी को अपने आगे-पीछे की खबर न थी। सभी मानो उस पतंग केएक दिन संध्या समय, होस्टल से दूर मैं एक कनकौआ लूटने बेतहाशा दौड़ा जा रहा था। आँखे>आसमान की ओर थीं और मन उस आकाशगामी पथिक की ओर, जो मंदगति से झूमता पतन की ओर>चला आ रहा था, माना कोई आत्मा स्वर्ग से निकलकर विरक्त मन से नए संस्कार ग्रहण करने जो रही>हो । बालकों की पूरी सेना लग्गे और झाड़दार बाँस लिए इनका स्वागत करने को दौड़ी आ रही थी।>किसी को अपने आगे-पीछे की खबर न थी। सभी मानो उस पतंग केएक दिन संध्या समय, होस्टल से दूर मैं एक कनकौआ लूटने बेतहाशा दौड़ा जा रहा था। आँखे>आसमान की ओर थीं और मन उस आकाशगामी पथिक की ओर, जो मंदगति से झूमता पतन की ओर>चला आ रहा था, माना कोई आत्मा स्वर्ग से निकलकर विरक्त मन से नए संस्कार ग्रहण करने जो रही>हो । बालकों की पूरी सेना लग्गे और झाड़दार बाँस लिए इनका स्वागत करने को दौड़ी आ रही थी।>किसी को अपने आगे-पीछे की खबर न थी। सभी मानो उस पतंग केएक दिन संध्या समय, होस्टल से दूर मैं एक कनकौआ लूटने बेतहाशा दौड़ा जा रहा था। आँखे>आसमान की ओर थीं और मन उस आकाशगामी पथिक की ओर, जो मंदगति से झूमता पतन की ओर>चला आ रहा था, माना कोई आत्मा स्वर्ग से निकलकर विरक्त मन से नए संस्कार ग्रहण करने जो रही>हो । बालकों की पूरी सेना लग्गे और झाड़दार बाँस लिए इनका स्वागत करने को दौड़ी आ रही थी।>किसी को अपने आगे-पीछे की खबर न थी। सभी मानो उस पतंग केएक दिन संध्या समय, होस्टल से दूर मैं एक कनकौआ लूटने बेतहाशा दौड़ा जा रहा था। आँखे>आसमान की ओर थीं और मन उस आकाशगामी पथिक की ओर, जो मंदगति से झूमता पतन की ओर>चला आ रहा था, माना कोई आत्मा स्वर्ग से निकलकर विरक्त मन से नए संस्कार ग्रहण करने जो रही>हो । बालकों की पूरी सेना लग्गे और झाड़दार बाँस लिए इनका स्वागत करने को दौड़ी आ रही थी।>किसी को अपने आगे-पीछे की खबर न थी। सभी मानो उस पतंग केएक दिन संध्या समय, होस्टल से दूर मैं एक कनकौआ लूटने बेतहाशा दौड़ा जा रहा था। आँखे>आसमान की ओर थीं और मन उस आकाशगामी पथिक की ओर, जो मंदगति से झूमता पतन की ओर>चला आ रहा था, माना कोई आत्मा स्वर्ग से निकलकर विरक्त मन से नए संस्कार ग्रहण करने जो रही>हो । बालकों की पूरी सेना लग्गे और झाड़दार बाँस लिए इनका स्वागत करने को दौड़ी आ रही थी।>किसी को अपने आगे-पीछे की खबर न थी। सभी मानो उस पतंग केएक दिन संध्या समय, होस्टल से दूर मैं एक कनकौआ लूटने बेतहाशा दौड़ा जा रहा था। आँखे>आसमान की ओर थीं और मन उस आकाशगामी पथिक की ओर, जो मंदगति से झूमता पतन की ओर>चला आ रहा था, माना कोई आत्मा स्वर्ग से निकलकर विरक्त मन से नए संस्कार ग्रहण करने जो रही>हो । बालकों की पूरी सेना लग्गे और झाड़दार बाँस लिए इनका स्वागत करने को दौड़ी आ रही थी।>किसी को अपने आगे-पीछे की खबर न थी। सभी मानो उस पतंग केएक दिन संध्या समय, होस्टल से दूर मैं एक कनकौआ लूटने बेतहाशा दौड़ा जा रहा था। आँखे>आसमान की ओर थीं और मन उस आकाशगामी पथिक की ओर, जो मंदगति से झूमता पतन की ओर>चला आ रहा था, माना कोई आत्मा स्वर्ग से निकलकर विरक्त मन से नए संस्कार ग्रहण करने जो रही>हो । बालकों की पूरी सेना लग्गे और झाड़दार बाँस लिए इनका स्वागत करने को दौड़ी आ रही थी।>किसी को अपने आगे-पीछे की खबर न थी। सभी मानो उस पतंग केएक दिन संध्या समय, होस्टल से दूर मैं एक कनकौआ लूटने बेतहाशा दौड़ा जा रहा था। आँखे>आसमान की ओर थीं और मन उस आकाशगामी पथिक की ओर, जो मंदगति से झूमता पतन की ओर>चला आ रहा था, माना कोई आत्मा स्वर्ग से निकलकर विरक्त मन से नए संस्कार ग्रहण करने जो रही>हो । बालकों की पूरी सेना लग्गे और झाड़दार बाँस लिए इनका स्वागत करने को दौड़ी आ रही थी।>किसी को अपने आगे-पीछे की खबर न थी। सभी मानो उस पतंग केएक दिन संध्या समय, होस्टल से दूर मैं एक कनकौआ लूटने बेतहाशा दौड़ा जा रहा था। आँखे>आसमान की ओर थीं और मन उस आकाशगामी पथिक की ओर, जो मंदगति से झूमता पतन की ओर>चला आ रहा था, माना कोई आत्मा स्वर्ग से निकलकर विरक्त मन से नए संस्कार ग्रहण करने जो रही>हो । बालकों की पूरी सेना लग्गे और झाड़दार बाँस लिए इनका स्वागत करने को दौड़ी आ रही थी।>किसी को अपने आगे-पीछे की खबर न थी। सभी मानो उस पतंग के

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