एक था पेड और एक था ठूँठ' पाठ के शीषॅक की साथॅकता स्पष्ट कीजिए।
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एक था पेड़ और एक था ठूँठ
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यहां पर लेखक कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर जी ने बहुत ही रोचक तरीके से जीवन की समन्वयवादी गुण को परिभाषित किया हैं| यहां पर उन्होने हरे-भरे पेड़ को दर्शाते हुए कहा है की, जो व्यक्ति जीवन में आनेवाली हर एक समस्या के साथ ताल-मेल बैठा कर चलता है उसका जीवन हमेशा खुशीओं से हरा-भरा रहता हैं|
वहीं दूसरी तरफ जो व्यक्ति जीवन के हर एक परिस्थिति में सिर्फ अड़ना जानता है, उसका जीवन एक ठूंठ की भांति वेरंग और वेजान हो जाता हैं|
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