एक दाष्ट,
(ATRA
गड़ गए कोटि दृग उसी ओर।
है अ
अपना रखना
संनाएँ करती
रण-भेरी तेरी बजती
उड़ता है तेरा ध्वन
जिसके सिर पर निज धरा हाथ,
उसके शिर-रक्षक कोटि हाथ,
जिस पर निज मस्तक झुका दिया,
झुक गए उसी पर कोटि माथ।
दिया, हे युग-स्रष्टा,
कैसा यह मोक्ष-मंत्र?
राजतंत्र के खंडहर में
अभिनव भारत स्व
तुम बोल उठे, युग बोल उठा,
तुम मौन बने, युग मौन बना।
कुछ कर्म तुम्हारे संचित कर,
युग-कर्म जगा, युग-धर्म तना।
acor
निसीम
युग-परिवर्तक, युग-संस्थापक,
युग-संचालक हे युगाधार!
युग-निर्माता, युग-मूर्ति! तुम्हें,
युग-युग तक युग का नमस्कार।
दी के प्रसि
देश के फा
विचारों
Raip
प्रभाती'
इनकेइस क्वेश्चन का काव्य काफी संख्या 17 है
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दाष्ट,
(ATRA
गड़ गए कोटि दृग उसी ओर।
है अ
अपना रखना
संनाएँ करती
रण-भेरी तेरी बजती
उड़ता है तेरा ध्वन
जिसके सिर पर निज धरा हाथ,
उसके शिर-रक्षक कोटि हाथ,
जिस पर निज मस्तक झुका दिया,
झुक गए उसी पर कोटि माथ।
दिया, हे युग-स्रष्टा,
कैसा यह मोक्ष-मंत्र?
राजतंत्र के खंडहर में
अभिनव भारत स्व
तुम बोल उठे, युग बोल उठा,
तुम मौन बने, युग मौन बना।
कुछ कर्म तुम्हारे संचित कर,
युग-कर्म जगा, युग-धर्म तना।
acor
निसीम
युग-परिवर्तक, युग-संस्थापक,
युग-संचालक हे युगाधार!
युग-निर्माता, युग-मूर्ति! तुम्हें,
युग-युग तक युग का नमस्कार।
दी के प्रसि
देश के फा
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Raip
प्रभाती'
इनकेइस क्वेश्चन का काव्य काफी संख्या 17 है
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