Economy, asked by azharkhan8549, 7 months ago

एकाधिकार तथा एकाधिकारिक प्रतियोगिता में अंतर स्पष्ट कीजिए तथा एकाधिकार बाजार में सामाजिक
लागत को समझाइए।

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Answered by Anonymous
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Answer:

अर्थशास्त्र में जब कोई एक व्यक्ति या संस्था का किसी उत्पाद या सेवा पर इतना नियंत्रण हो कि वह उसके विक्रय से सम्बन्धित शर्तों एवं मूल्य को अपनी इच्छानुसार लागू कर सके तो इस स्थिति को एकाधिकार (monopoly) कहते हैं। अर्थात बाजार में प्रतियोगिता का अभाव एकाधिकार की मुख्य विशेषता है। Monopoly शब्द की उत्पत्ति ग्रीक शब्द से हुई है। मूल शब्द है monopollein जो दो शब्दो से मिलकर बना है- mono और pollein अर्थात् mono का अर्थ है एक एवं pollein का अर्थ है बाजार । एकाधिकार का अर्थ हुआ। वैसा बाजार जिसमे एक विक्रेता एवं अधिकतम संख्या मे क्रेता मौजूद हो।

Answered by Anonymous
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Answer:

एकाधिकार तथा एकाधिकारिक प्रतियोगिता में अंतर इस प्रकार  स्पष्ट है !

Explanation:

एकाधिकार दो शब्दों से मिलकर बना है – एक + अधिकार अर्थात् बाजार की वह स्थिति जब बाजार में वस्तु का केवल एक मात्र विक्रेता हो । एकाधिकारी बाजार दशा में वस्तु का एक अकेला विक्रेता होने के कारण विक्रेता का वस्तु की पूर्ति पर पूर्ण नियन्त्रण रहता है । विशुद्ध एकाधिकार (Pure Monopoly) में वस्तु का निकट स्थानापन्न भी उपलब्ध नहीं होता ।  

एकाधिकारी बाजार में वस्तु का एक ही उत्पादक होने के कारण फर्म तथा उद्योग में कोई अन्तर नहीं होता अर्थात् एकाधिकार में उद्योग ही फर्म है अथवा फर्म ही उद्योग है

एकाधिकारी पूर्ण प्रतियोगिता के उत्पादक की भाँति कीमत प्राप्तकर्ता (Price Taker) नहीं होता बल्कि कीमत निर्धारक (Price Maker) होता है किन्तु एकाधिकारी किसी वस्तु की कीमत तथा उस वस्तु की पूर्ति दोनों को एक साथ नियन्त्रित नहीं कर सकता । यदि वह विक्रय को बढ़ाना चाहता है तो उसे कीमत कम करनी पड़ेगी ।

सामान्य दशाओं में एकाधिकारी के लिए वस्तु की पूर्ति और माँग दोनों दशाओं पर एक साथ नियन्त्रण रखना सम्भव नहीं हो पाता । बाजार में एकाधिकारी होने के कारण वह वस्तु की पूर्ति को तो नियन्त्रित कर लेता है परन्तु वह वस्तु की माँग को प्रभावित नहीं कर सकता । एक समय विशेष पर एकाधिकारी उत्पादन स्तर और कीमत दोनों को निर्धारित नहीं कर सकता ।

यदि वह कीमत निर्धारित करता है तब उसे उस कीमत पर उपभोक्ता की माँग के अनुसार पूर्ति तय करनी पड़ेगी तथा इसके विपरीत यदि वह उत्पादन स्तर (अथवा पूर्ति पक्ष) निर्धारित करता है तो बाजार में उपभोक्ता की माँग की दशाओं के अनुसार वस्तु की जो भी कीमत निश्चित होगी उस पर एकाधिकारी को अपनी वस्तु बेचनी होगी ।

एक ही समय पर पहले कीमत तय करना तथा उस कीमत पर इच्छानुसार वस्तु की मात्रा बेचना दोनों कार्य एकाधिकारी के लिए सम्भव नहीं होते ।

अब प्रश्न यह उठता है कि एकाधिकारी कीमत एवं पूर्ति में से किस घटक के निर्धारण को चुने । एक चतुर एकाधिकारी वस्तु की पूर्ति की तुलना में वस्तु की कीमत को नियन्त्रित करना अधिक पसन्द करता है क्योंकि अपने द्वारा निश्चित की गयी कीमत पर बाजार में उपस्थित होने वाली वस्तु की माँग को वह उतनी पूर्ति करके सहजता से पूरी कर लेगा ।

इसके विपरीत यदि वह पूर्ति निश्चित करता है तब उसे उस पूर्ति को बेचने के लिए माँग की दशाओं के आधार पर कम कीमत पर बिक्री करनी पड़ सकती है जिसके कारण एकाधिकारी को हानि का खतरा उत्पन्न हो सकता है । अतः एकाधिकारी के लिए कीमत निश्चित करना अधिक सुरक्षित है ।

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