Political Science, asked by souravrock9690, 8 months ago

एक ध्रुवीय विश्व पर निबंध लिखें

Answers

Answered by vaibhav05271
0

Answer:

एक अर्थशास्त्री और इस समाचार पत्र के स्तम्भकार, श्री अरविंद सुब्रामनियन ने एक उत्तेजनावर्धक पुस्तक विश्व की आर्थिक सत्ता में वर्जस्व के रूप में व्यापक परिकल्पना से बहुत पहले सामर्थ्यवान चीन के आगमन की घोषणा करते हुए लिखी है।

ग्रहणः चीन के आर्थिक वर्चस्व की छाया में रहते हुए (पीटर्सन अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र संस्थान, 2011) ने एक आत्मसंतुष्ट पश्चिम को चेतावनी दी थी (विचलित भारत को भी इस पर अवश्य ध्यान देना चाहिए) कि ‘'चीन का आर्थिक वर्चस्व बहुत अधिक सन्निकट है और उसका आधार बहुत व्यापक है, जिसमें उत्पादन, व्यापार और मुद्रा वर्तमान में स्वीकृत को छोड़ कर शामिल हैं।

नब्बे के दशक ने कई पुस्तकें देखी थी, जो ‘'चीन के पतन की घड़ी आने'' की भविष्यवाणी कर रही थीं जबकि कि अभी हाल ही में ऐसी पुस्तकों की बाढ़ आ गयी थी जो चीन के उदय को स्वीकार कर रही थीं परन्तु सावधान भी करती थीं, कि ऐसा पूर्वाभास है कि संयुक्त राज्य सबसे ऊपर बना रहेगा।

पश्चिम से पूरब की ओर ‘'शक्ति के स्थानांतरण'', जी-7 अर्थव्यवस्थाओं के पतन और चीन के उदय के बारे में निश्चित ही बहुत कुछ लिखा जा चुका है। वर्ष, 2008 और 2009 में भी फ्रेड़ बर्गस्टेन के नेतृत्व में संयुक्त राज्य के कई लोगों की ऐसी धारणा थी कि चीन और संयुक्त राज्य मिल कर जी 2 का सृजन कर सकते हैं और दो ध्रुवीय सहराज्य का संचालन कर सकते हैं। जी 2 के प्रति चीनी तिरस्कार इस बात का प्रतीक है कि वह विकासशील विश्व की आवाज के रूप में अपना स्तर बनाये रखना चाहता है और वह फ्रेंच के ‘'बहु ध्रुवीय'' अथवा ‘'बहुसंघीय मध्यमार्गी'' विश्व की अवधारणा को प्राथमिकता देगा, शायद यह एशिया में चीन की बढ़ती ‘'निश्चयात्मकता'' को शान्त करने का यह एक हिस्सा हो।

डॉ. सुब्रामानियन कहते हैं, कि जी-2 को भूल जाइए और बहु ध्रुवीकरण के बारे में भूल जाइए, एक नया एकल ध्रुवीय विश्व निर्मित हो रहा है, जिसके शीर्ष पर चीन होगा। वे कहते हैं ‘अंतर्निहित आर्थिक रुख दर्शाता है' ‘' किे कोई भी जी-1 की भावी सम्भावनाओं को नकार नही सकता परन्तु वह संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ नही भी हो सकता है। चीन के अकेले का वर्चस्व सम्भव है, वह संयत है और वास्तविकता बहुत दूर नही है।

भारत में जो लोग अभी भी शीत युद्ध काल के बाद ‘'एकल ध्रुवीय'' सत्ता के बारे में चिंतित हैं उन्हें इस नये ‘'चीनीध्रुवीय'' विश्व के मार्ग दर्शक से बहुत कुछ सीखना होगा। डॉ. सुब्रामानियन के ‘'आर्थिक वर्चस्व'' की अवधारणा का जन्म, रिचर्ड कूपर द्वारा वर्ष, 2003 में लिखे गये एक निबंध में वर्णित ‘आर्थिक सत्ता की अवधारणीयता' से हुआ था, जो कहती है: ‘' आर्थिक सत्ता में दूसरे पक्ष को दण्ड़ित (अथवा पुरस्कृत करने) की निर्णायक क्षमता सम्मिलित होती है। तदनुसार उस पक्ष की इच्छित प्रतिक्रिया क्या है, उस धारक की इच्छा को अथवा यदि आवश्यक हुआ तो उसके उपयोग करने की राजनैतिक क्षमता को अवधारणा में सम्मिलित करन करना चाहिए।”

डॉ. सुब्रामनियन ने ‘'आर्थिक वर्चस्व'' की अवधारणा का" आर्थिक वर्चस्व की तालिका (आई ई ड़ी)” के साथ परिमाण निर्धारित कर दिया है। आई ई ड़ी, ‘'आर्थिक वर्चस्व की निर्धारित सम्भावना'' के छः में से तीन तुले हुए औसत हैं। ये छः हैं : सम्पूर्ण संसाधन, सैन्य संसाधन, राजस्व संसाधन, व्यापार, विदेशी वित्त एवं मुद्रा आदि। ये उस चीनी रणनीति के घटक हैं, जिसकी उसने बहुत पहले "व्यापक राष्ट्रीय शक्ति” (सी एन पी) के रूप में व्याख्या की थी। भारत में भी राष्ट्रीय सुरक्षा की एक तालिका निर्मित किए जाने के प्रयास किए गए थे।

डॉ. सुब्रामनियन ने अपनी तालिका के छः में से तीन विविध घटकों को लिया था: सम्पूर्ण संसाधन को देश के सकल घरेलू उत्पाद के द्वारा निर्धारित परिमाण, माप का एक हिस्सा डॉलर के संदर्भ में और दूसरा क्रय शक्ति समानता के संदर्भ में, व्यापार का माप कुल विश्व व्यापार (निर्यात एवं आयात) में प्राप्त हिस्से के रूप में और वित्त जो एक देश द्वारा एक दशक से अधिक समय तक अपने कुल वर्तमान खाते में दर्शाया गया हो, वे सकल घरेलू उत्पाद को राजस्व और सैन्य शक्ति के एक अच्छे प्रतिनिधि के रूप में मानते हैं। अर्थव्यवस्था जितनी विशाल होगी, शक्ति प्रकल्प के लिए राजस्व एवं सैन्य क्षमता उतनी ही अधिक होने की सम्भावना होगी।

अपनी नई सूची को परिभाषित करते हुए डॉ. सुब्रामानियन, संयुक्त राज्य, यूरोपीय संघ, जापान, रूस, चीन तथा अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं का मूल्यांकन करते हैं और सम्मिलित करते हैं कि ‘'चीन की अर्थव्यवस्था अपनी सभी प्रतिद्विंद्वियों से अधिक विशाल है और उसका व्यापार संयुक्त राज्य से लगभग दोगुना हो सकता है। वर्ष, 2030 तक इसके वर्चस्व की समानता 1970 के दशक में संयुक्त राज्य तथा 1870 के आस-पास के यूनाइटेड किंगडम से की जा सकती है। अर्थव्यवस्था का यह वर्चस्व बदले में अग्रणी मुद्रा भण्ड़ारों के स्तर को वर्तमान सम्भावना से बहुत पहले ऊँचा उठा देगा।‘'

इसी केंद्रीय निष्कर्ष के आधार पर डॉ. सुब्रामानियन ने अपना जागरण अनुरोध जारी किया है: "चीन का आर्थिक वर्चस्व, संयुक्त राज्य की अपेक्षाकृत अधिक सन्निकट है। हो सकता है यह पहले ही शुरू हो गया हो तब इसका आधार अधिक व्यापक होगा (इसमें सम्पदा, व्यापार, विदेशी वित्त एवं मुद्रा सम्मिलित होंगे) और यह परिमाण में आगामी 20 वर्षों तक यूनाइटेड किंगडम के हालकियॉन साम्राज्य काल अथवा संयुक्त राज्य के द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के काल के जैसा विशाल होगा।‘'

Explanation:

Similar questions