एक उपभोगता दूध में पानी की मिलावट का पता लगनते के लिए किस उपकरण का प्रयोग करता है?
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Explanation:
प्लेट कालोनी परीक्षण
दूध में जीवाणुओं की संख्या उसकी गुणवत्ता को दर्शाता है। यदि इन जीवाणुओं को दूध में पनपने दिया जाए तो ये दूध में तरह-तरह के रासायनिक परिवर्तन ला सकते है। दूध में बहुधा बीमारी फैलाने वाले जीवाणु भी मौजूद रहते है कभी-कभी कुछ जीवाणु दूध में उपयोगी कार्य भी कर सकते है। इन सब बातों को ध्यान में रख कर दूध में इनकी उपस्थिति का पता लगाना आवश्यक हो जाता है। इसलिए प्लेट कालोनी परीक्षण दूध में जीवाणुओं की संख्या जानने के ली किया जाता है।
इस परीक्षण के लिए दूध की एक निश्चित मात्रा लेकर वृद्धि माध्यम में मिलाते है प्लेट्स को 32 डिग्री सें. तापक्रम पर 48 घंटे रखने पर दूध में उपस्थित प्रत्येक जीवित जीवाणु माध्यम में एक दिखने वाली कालोनी बना लेते है जिन्हें गिन कर दूध में उपस्थित जीवाणुओं का पता लग जाता है।
उपकरण
(1) पेट्री प्लेट्स (एक जोड़ा)
(2) दूध को पतला करने के लिए नापने वाले सिलिंडर
(3) पिपेट, 1 मिली. एवं 20 मिली.
(4) अगर मीडियम या वृद्धि माध्यम
(5) इनकुवेटर
(6) स्ट्रेलाइजर (बर्तनों को जीवाणु रहित करने का यंत्र)
(7) आटोक्लेब (मीडियम को निर्जीवीकरण करने का यंत्र)
(8) कालोनी गिनने का यंत्र
विधि
(1) 1 मिली दूध के नमूने को पानी मिलाकर (जीवाणु रहित) पतला कर लेते है (लगभग10-4 से 10-6 तक)
(2) पिपेट की सहायता से पतले दूध का 1 मिली. दोनों प्लेटों में अलग-अलग डालते है।
(3) अगर मीडियम को 20 मिली. (40 डिग्री सें.) लेकर प्रत्येक प्लेट में अलग-अलग डालते है।
(4) मीडियम को दूध में अच्छी तरह से हिलाकर मिला लेते है।
(5) मीडियम जब ठोस बन जाए तब दोनों प्लेटों पर “ए” और “बी” लिखकर इनकुलेटर में 32 डिग्री सें. पर 48 घंटे के लिए रख देते है।
(6) इसके बाद कालोनी काउन्टर की सहायता से दोनों प्लेटों ‘ए’ तथा ‘बी’ पर बनी कालोनी को अलग-अलग गिन कर नोट कर लेते है।
(7) दोनों प्लेटों पर बनी कालोनी का औसत ले लेते है वही औसत वाला कालोनी नम्बर पतले 1 मिली. दूध में उपस्थित जीवाणुओं का नम्बर होता है।
(8) उस नम्बर को दूध के पतले किए गए नम्बर यानी 10-4 या 10-6 से गुणा करके प्रति मिली. दूध में जीवाणुओं की संख्या रिपोर्ट की जाती है।
फासफटेज परीक्षण
यह परीक्षण यह देखने के लिए किया जाता है की क्या दूध पूर्ण रूप से पास्तुरीकृत है या नही। पूर्ण रूप से पास्तुरीकृत दूध में फासफटेज नामक किण्वक पूरी तरह से नष्ट हो जाता है। दूध में इसकी उपस्थिति यह दर्शाती है की वह पूर्ण रूप से पास्तुरीकृत नही है। इस परीक्षण द्वारा यही पता लगाया जाता है कि क्या दूध में फासफटेज नामक किण्वक है या नही। इस किण्वक की उपस्थिति इसकी रासायनिक क्रिया के आधार पर किया जाता है।
विधि
इस विधि में एक परखनली में लगभग 10 मिली. दूध लेकर लगभग 5 मिली. की मात्रा में डाइसोडियम पैरा नाइट्रोफिनाइल फास्फेट मिलाते है दोनों को अच्छी प्रकार से मिश्रित कर लेते है तत्पश्चात 15-20 मिनट के लिए रख देते है। यदि इस दूध के नमूने में फासफटेज नामक किण्वक अभी भी जीवित दशा में है तब वह इस मिश्रण को जल अपघटित करके फिनाल उत्पन्न कर देता है। एक विशेष डिस्क की सहायता से दूध में फिनाल की उपस्थिति का पता लगा लिया जाता है। फिनाल की अनुपस्थिति यह बताती है कि दूध पूर्ण रूप से पास्तुरीकृत है।
सारांश
दूध की गुणवत्ता तथा उसमे मिलावट आदि का पता लगाने के लिए दूध के परीक्षणों की जानकारी जरूरी है। इसके अंतर्गत दूध का नमूना लेने से शुरू करते हुए पहले प्लेटफार्म परीक्षण किए जाते है। प्लेटफार्म परीक्षण के अंतर्गत संवेदिक परीक्षण, सी.ओ.बी.टेस्ट, तलहट परीक्षण, अल्कोहल परीक्षण तथा 10 मिनट रिसाजुरिन परीक्षण सम्मिलित किए गए है। डेयरी में दूध को अंदर लाने से पहले इन परीक्षणों को किया जाता है। प्रयोगशाला परीक्षणों में मुख्यत: वसा परीक्षण (गरबर सेंट्रीफ्यूज द्वारा) वसा रहित ठोस परीक्षण, मिथाइलिन ब्लू परीक्षण, रिसाजुरिन परीक्षण सम्मिलित है। प्रयोगशाला परीक्षण में प्लेट कालोनी परीक्षण व फास्फेटेज परीक्षण सम्मिलित है। प्लेट कालोनी परीक्षण से दूध में जीवाणुओं की संख्या का पता चलता है।