Economy, asked by jaatsuman610, 6 months ago

एक उदाहरण दीजिए जिसमें केवल द्वितीयक आंकड़ों का ही उपयोग हो सकता है​

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Answered by vermadarsh8948
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Explanation:

द्वितीयक समूह

कूली द्वारा प्रतिपादित प्राथमिक समूह जब काफी लोकप्रिय हो गया तो कुछ विद्वानों ने इसके प्रतिकूल सामाजिक व्यवस्थ की भी बात कही, जो द्वितीयक समूह के रूप में प्रचलित हुआ।

इस तरह के समूह में आमने-सामने का संबंध काफी कमजोर होता है।, समूह के सदस्यों के बीच घनिष्ठता की कमी होती है। जैसे दुकानदार-ग्राहक का संंबंध, डॉक्टर-रोगी का संबंध, नेता और अनुयायी का संबंध, ऑफिसर एवं किरानी का संबध। एेसे संबंधों को लोग योजनाबद्ध रूप में या जानबूझकर निर्मित करते हैं।

द्वितीयक समूह के संबंधों में स्थायित्व की कमी एवं संबंधों का छिछलेपन का होना स्वाभाविक है। क्योंकि साधारणतया इसका आकार प्राथमिक समूह की तुलना में काफी बड़ा होता है। सदस्यों के बीच हमेशा आमने सामने का संबंध नहीं हो पाता है। लोग एेसे समूहों का निर्माण स्वार्थवश करते हैं। अत: सदस्यों के बीच में स्वाभाविक रूप से संवेगात्मक-भावनात्मक लगाव की कमी होती है

द्वितीयक समूह की परिभाषाएं

-स्टीफन कोल के अनुसार: द्वितीयक समूह वे होते हैं, जो अपेक्षाकृत काफी बड़े होते हैं और उनमें पाए जोन वाले संबंध काफी अवैयक्तिक होते हैं।

कोल के विचार से स्पष्ट है कि द्वितीयक समूह के सदस्यों के बीच संबंधों में आत्मीयता की कमी होती है। प्राथमिक समूह की तुलना में इसके सदस्यों के बीच अंत:क्रियाएं भी काफी कम मात्रा में पायी जाती हैं। एेसा इसलिए होता है क्योंकि आकार में बड़ा होने के कारण इसके सदस्यों में दूरी बहुत होती है

एंथोनी गिडेंस की परिभाषा

यह व्यक्तियों का एक एेसा समूह है जिसके अंतर्गत लोग मिलते तो हैं, लेकिन उनके संबंध मुख्य रूप से अवैयक्तिक होते हैं। व्यक्तियों के बीच संबंध गाढ़े नहीं होते । लोग सामान्यतया तभी एक दूसरे के निक ट आते हैं, जब उनके सामने कोई निश्चित व्यावहारिक उद्देश्य होता है।

द्वितीयक समूह की विशेषताएं्र

-बड़ा आकार

-अप्रत्यक्ष एवं अवैयक्तिक संबंध

-एेच्छिक सदस्यता

-स्थायित्व में कमी

-सीमित स्वार्थों की पूर्ति

-योजनाबद्ध व्यवस्था

-अल्पकालिक सदस्यता

-औपचारिक संगठन

-आई या दे फीलिंग

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