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ग) खेल का महत्त्व
खेल अनेक प्रकार के होते हैं। कुछ खेल मैदान में खेले जाते हैं, कुछ घरों में और कुछ जल में। क्रिकेट, वॉली बॉल, फुटबॉल, कबड्डी, पोलो, हॉकी आदि खेल मैदान में खेले जाते हैं और कैरम, लुडो, शतरंज आदि प्रायः घरों में खेले जाते हैं। बैडमिंटन, टेनिस आदि मैदान में भी खेले जाते हैं, इनडोर स्टेडियम में भी। तैराकी, नौका-दौड़ जल के खेल हैं।
खेल का महत्त्व अनेक दृष्टियों से है। पहली बात तो यह कि इसमें भाग-दौड़ करने से शरीर चुस्त-दुरुस्त होता है और चपलता आती है जो स्वस्थ रहने के लिए अत्यावश्यक है। दूसरी बात यह है कि खेल से प्रतियोगिता की भावना पैदा होती है जो जीवन में भी जरूरी है। तीसरी बात यह है कि इससे परस्पर सहयोग की भावना उत्पन्न होती है और त्याग की भावना का भी विकास होता है क्योंकि खिलाड़ी अपने लिए ही नहीं, पूरी टीम के लिए खेलता है और कभी अपने नगर, राज्य और देश के लिए भी। उसका सम्मान स्थान या देश से भी जुड़ जाता है। सबसे बड़ी बात यह है कि खेल से समय और आत्म-नियंत्रण का भाव उत्पन्न होता है।
स्पष्ट है कि खेल का हमारे जीवन में, व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास के लिए, महत्वपूर्ण स्थान है। यही कारण है कि राज्य सरकारें इस पर ध्यान देने लगी हैं। राष्ट्रीय स्तर पर खेल नीति बनने लगी है। इसके फलस्वरूप खेल धीरे-धीरे व्यवसाय का रूप लेने लगे हैं। क्रिकेट, टेनिस और फुटबॉल के खिलाड़ी करोड़ों का वारा न्यारा करने लगे हैं क्रिकेट, टेनिस में जीत-हार पर जुआबाजी होने लगी है और खिलाड़ी जीत और हार के लिए पैसे लेने लगे हैं कुछ खिलाड़ी तो जीत के लिए नशीली दवाएँ भी लेते हैं। यह दुःखद स्थिति हैं और खेल-भावना के विपरीत और शर्मनाक है।
वस्तुतः खेलों को खेल के रूप में स्वास्थ्य एवं जीवन विकास की सीढ़ी के रूप में ही लेना चाहिए। इसी में इसकी सार्थकता है।