एक ज़ुबान सिख ली मैंने भी, तुमको लाखो से बतलाउँगी ।
हर रोज ढूंढोगे खुद को, तुमको ऐसा सबक सिखाऊंगी।।
उस बेटी को तूने मारा है, जो जीवन की मतवाली थी।
छू ली तूने अग्नि है, लाखो से राख बनाऊँगी।।
एक हड्डी ही बस तोड़ी है, वो ग़ुरूर ना तूने तोडा है,
इन लाखो की भीड़ में मैंने, अपना वजूद भी छोडा है।
एक ज़ुबा जो तूने ले ली है, अब लाखो से बुलवाउँगी ।
हर रोज ढूंढोगे खुद को, मै ऐसा सबक सिखाऊंगी ।।
मै डरती थी पर कमजोर न थी,
मुझको दरिंदो ने तोडा है।
मेरे हर रक्त के कतरे को,
अब तेरी मौत दिखाऊंगी।
हर रोज ढूंढोगे खुद को, मै ऐसा सबक सिखाऊंगी।।
मन की ईष्या, मनीषा से?
तो अब ईष्या पे दाव लगाउँगी।
तुम क्या रोकोगे मुझको,
मैं खुद को न्याय दिलाऊँगी।।
बल से लुटा था मुझको, अब अपना बल दिखलाऊँगी।
हर रोज ढूंढोगे खुद को, मैं ऐसा सबक सिखाऊंगी।।
by-- KHUSHI UPADHYAY

..... this is my poem... tell me frinds kesi hai. and pls ese monsters ko dur kro hum sub se.......#justice for manisha#justice for girls#kbhi kamzor mat pdo kisike bhi samne......take care yourself dear friends
Answers
Answered by
1
Answer:
It's too good.
Actually it's excellent..
Similar questions