Hindi, asked by enamulbarbhuiya786, 18 days ago

एकजूद TV ज्यों निकलकर बादलों की गोद से, थी अभी एक बूंद कुछ आगे बढ़ी; / (सोचने फिर-फिर यही जी में लगी ( आह, क्यों घर छोड़कर है यों कढ़ी) देव, मेरे भाग्य में है क्या बदा, मैं बनूंगी या मिलूँगी धूल में; या जलूँगी गिर अंगारे पर किसी, चू पढूंगी या कमल के फूल में? बह गई उस काल एक ऐसी हवा, वह समुंदर ओर आई अनमनी; एक सुंदर सीप का मुँह था खुला, वह उसी में जा पड़ी, मोती बनी । लोग यों ही हैं झिझकते सोचते, जबकि उनको छोड़ना पड़ता है घर; 7 किंतु घर का छोड़ना अक्सर उन्हें, बूंद लौं कुछ और ही देता है कर। अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध म​

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Answered by nandiniray192006047
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Answer:

ज्यों निकलकर बादलों की गोद से,

थी अभी इक बूंद कुछ आगे बढ़ी।

सोचने फिर फिर यही जी में लगी,

आह क्यों घर छोड़कर मैं यों कढ़ी ।

देखें मेरे भाग्य में है क्या बदा,

मैं बनूंगी या मिलूँगी धूल या जागी गिर अंगारे पर किसी,

चू पढूंगी या कमल के फूल में ।।

के बह गई उस काल इक ऐसी हवा,

वह समुंदर ओर आई अनमनी।

एक सुंदर सीप का मुँह था खुला,

वह उसी में जा पड़ी मोती बनी ।

लोग यों ही हैं झिझकते सोचते,

जबकि उनको छोड़ना पड़ता है घर।

किंतु घर का छोड़ना अकसर उन्हें,

बँद लौं कुछ और ही देता है कर ।

Q. बादलों से निकलने के बाद बूंद के मन में क्या असमंजस पैदा हुआ?

Explanation:

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