Political Science, asked by lucy86211, 8 months ago

Ekal ekikrit nyaay pranali kya hai batao

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Answered by siyatomar64
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भारतीय न्यायिक प्रणाली अंग्रेजों ने औपनिवेशिक शासन के दौरान बनाई थी। इसको आम कानून व्यवस्था के रुप में जाना जाता है जिसमें न्यायाधीश अपने फैसलों, आदेशों और निर्णयों से कानून का विकास करते हैं। देश में कई स्तर की विभिन्न तरह की अदालतें न्यायपालिका बनाती हैं। भारत की शीर्ष अदालत नई दिल्ली स्थित सुप्रीम कोर्ट है और उसके नीचे विभिन्न राज्यों में हाई कोर्ट हैं। हाई कोर्ट के नीचे जिला अदालतें और उसकी अधीनस्थ अदालतें हैं जिन्हें निचली अदालत कहा जाता है। इसके अलावा ट्रिब्यूनल, फास्ट ट्रेक कोर्ट , लोक अदालत आदि न्यायपालिका के अंग के रुप में कार्य करते हैं। कानून को बनाए रखने और चलाने में न्यायपालिका की बहुत अहम भूमिका है। यह सिर्फ न्याय नहीं करती बल्कि नागरिकों के हितों की रक्षा भी करती है। न्यायपालिका कानूनों और अधिनियमों की व्याख्या कर संविधान के रक्षक के तौर पर काम करती है। अदालतें, ट्रिब्यूनल और नियामक, यह सब मिलकर देश के हित में एक एकीकृत प्रणाली बनाते हैं। कानून को बनाए रखने और चलाने में न्यायपालिका की बहुत अहम भूमिका है। यह सिर्फ न्याय नहीं करती बल्कि नागरिकों के हितों की रक्षा भी करती है। न्यायपालिका कानूनों और अधिनियमों की व्याख्या कर संविधान के रक्षक के तौर पर काम करती है। अदालतें, ट्रिब्यूनल और नियामक, यह सब मिलकर देश के हित में एक एकीकृत प्रणाली बनाते हैं।

भारत का सुप्रीम कोर्ट :- 28 जनवरी 1950 को भारत में सुप्रीम कोर्ट अस्तित्व में आया। उसके आने पर भारत में औपनिवेशिक शासन के दौरान की सुप्रीम न्यायिक प्रणाली के न्यायिक समिति की प्रिवी कांउसिल और संघीय अदालत खत्म हुए। सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त एक मुख्य न्यायाधीश और 30 अन्य न्यायाधीश होते हैं। इन न्यायाधीशों का रिटायरमेंट 65 साल की उम्र में होता है। शीर्ष कोर्ट भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकारों के लिए बड़े पैमाने पर काम करता है। देश की विभिन्न सरकारों के बीच विवाद के कारण यह एक सुप्रीम अधिकारी भी है। इसके पास अपने द्वारा पहले दिए गए किसी भी फैसले या आदेश की समीक्षा का भी अधिकार है, साथ ही यह किसी एक हाई कोर्ट से दूसरी या एक जिला कोर्ट से दूसरी में मामलों को हस्तांतरित भी कर सकता है।

राज्यों में उच्च न्यायालय :- राज्य स्तर पर सबसे कड़ी न्यायिक शक्ति देश में हाई कोर्ट के पास होती है। देश में 24 हाई कोर्ट हैं, जिनका क्षेत्राधिकार राज्य, केंद्र शासित प्रदेश या राज्यों के समूह पर होता है। सन् 1862 में स्थापित होने के कारण कलकत्ता हाई कोर्ट देश का सबसे पुराना न्यायालय है। राज्य या राज्यों के समूह की अपीलीय प्राधिकारी होने के नाते हाई कोर्ट के पास शीर्ष कोर्ट की तरह अधिकार और शक्तियां हैं । हाई कोर्ट के तहत सिविल और आपराधिक निचली अदालतें और ट्रिब्यूनल कार्य करते हैं। सभी हाई कोर्ट भारत की सुप्रीम कोर्ट के तहत आते हैं।

जिला और अधीनस्थ न्यायालय :- जिला और अधीनस्थ अदालतें उच्च न्यायालय के तहत आती हैं। इन अदालतों का प्रशासन क्षेत्र भारत में जिला स्तर का होता है। जिला अदालत सभी अधीनस्थ अदालतों के उपर लेकिन उच्च न्यायालय के नीचे होती हैं। जिले का क्षेत्राधिकार जिला एवं सत्र न्यायाधीश के पास होता है। सिविल मामलों का संचालन करते हुए जिला जज और आपराधिक केसों के न्याय का संचालन करते समय उसे सत्र न्यायाधीश कहा जाता है। राज्य सरकार द्वारा मेट्रोपोलिटन के रुप में मान्यता प्राप्त शहर या इलाके की जिला अदालत में अध्यक्षता करने पर उसे मेट्रोपोलिटन सत्र न्यायाधीश के तौर पर संबोधित किया जाता है। जिला न्यायाधीश हाई कोर्ट के न्यायाधीश के बाद सबसे बड़ा न्यायिक प्राधिकरण रहता है। जिला अदालतों का भी अधीनस्थ अदालतों पर अधिकार रहता है। निचली अदालतों में सिविल मामलों को देखने के लिए आरोही क्रम में जूनियर सिविल जज कोर्ट, प्रिंसिपल जूनियर सिविल जज कोर्ट, वरिष्ठ सिविल जज कोर्ट देखते हैं। निचली अदालतों में सिविल मामलों को देखने के लिए आरोही क्रम में द्वितीय श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट की कोर्ट, प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट अदालत और मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अदालत होती है।

ट्रिब्यूनल :-सामान्य तौर पर ट्रिब्यूनल एक व्यक्ति या संस्था को कहा जाता है, जिसके पास न्यायिक काम करने का अधिकार हो चाहे फिर उसे शीर्षक में ट्रिब्यूनल ना भी कहा जाए। उदाहरण के लिए एक न्यायाधीश वाली अदालत में भी हाजिर होने पर वकील उस जज को ट्रिब्यूनल ही कहेगा।

फास्ट ट्रेक कोर्ट :-भारत में फास्ट ट्रेक कोर्ट यानि एफटीसी का लक्ष्य जिला और सैशन अदालतों में केसों के बैकलाग दूर करने का है। इन अदालतों के काम करने कर तरीका भी सत्र और ट्रायल कोर्ट जैसा है। शुरुआत मे फास्ट ट्रेक कोर्ट को लंबे समय से लंबित पड़े मामलों को देखने के लिए बनाया गया था पर बाद में उन्हें विशिष्ट मामले देखने के लिए निर्देशित किया गया जो कि मुख्य तौर पर महिलाओं और बच्चों से

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