एकदा श्रीकंठः तेन सह प्रातः नवादने तस्य
गृहम् अगच्छत् तत्र कृष्णमूर्ति तस्य माता पिता च स्वशक्त्या श्रीकण्ठस्य अतिथ्यम् अकुर्वन एतत्
दृष्ट्वा श्रीकण्ठः अकथयत्- मित्र अहं भवतां सत्कारेण संतुष्टोऽसि्म केवलम् इदमेव मम दुःखं यत् तव गृहे एकोऽपि भृत्यल्टः हिंदी अनुवाद करोतिॽ
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आधुनिक युग में भौतिक सुखों में जकड़ा हुआ मानव अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए अन्यों का अहित और तिरस्कार करने से भी नहीं चूकता। स्वार्थपरक और दूसरों को हीन समझने वाले मनुष्य की सबसे श्रेष्ठ शिक्षिका प्रकृति ही है। समाज के उत्थान, विकास और सुरक्षा के हेतु हमें अपना स्वार्थ छोड़ना ही होगा।
प्रस्तुत पाठ में इसी मानवीय भावना को पशु-पक्षियों के माध्यम से दर्शाया गया है कि परस्पर विवाद नहीं करते हुए आपसी सहयोग से कल्याणपथ पर चलना चाहिए। नदी किनारे आराम करते सिंह को बन्दर अनेक प्रकार से तंग करते हैं तो क्रोधित सिंह उनसे तंग करने का कारण पूछता है। बन्दर सिंह को वनराज पद के अयोग्य घोषित करते है कि वह भक्षक है रक्षक नहीं। और अपनी ही रक्षा करने में असमर्थ है तो अन्यजीवों की रक्षा किस प्रकार करेगा?
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एकदा श्रीकण्ठः तेन सह प्रातः नववादने तस्य गृहम् अगच्छत्। तत्र कृष्णमूर्तिः तस्य माता पिता च स्वशक्त्या श्रीकण्ठस्य आतिथ्यम् अकुर्वन्। एतत् दृष्ट्वा श्रीकण्ठः अकथयत्- ‘‘मित्र! अहं भवतां सत्कारेण सन्तुष्टोऽस्मि। केवलम् इदमेव मम दुःखं यत् तव गृहे एकोऽपि भृत्यः नास्ति। मम सत्काराय भवतां बहु कष्टं जातम्।