एली
सुमित्रानंदन पंत /115
तवर्ष में जीरा
र गई, आर ११ की र
सुंदर लगती सरपत छाई
तट पर तरबूजों की खेती;
अंगुली की कंधी से बगुले
कलैंगी संवारते हैं कोई,
तिरते जल में सुरखाव, पुलिन पर
मगरीठी रहती सोई।
उठी कोकिला प्रतवाली
इल, पलित जात
मेगाबरी मूली
हँसमुख हरियाली हिम-आतष
सुख से अलसाए से सोए,
भीगी औधयाली में निशि की
तारक स्वप्नों में से खोए-
मरकत डिब्बे सा खुला ग्राम-
जिस पर नीलम नभ आच्छादन-
निरुपम हिमांत में स्निग्ध शांत
निज शोभा से हरता जन मना
जब दिम
गोभी, बैंगन, मूली
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हँसमुख हरियाली हिम-आतप सुख से अलसाए-से सोए।
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हँसमुख हरियाली हिम-आतप सुख से अलसाए-से सोए।
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