Ell nino ke barso ke doran samudr stha ke tapmaan me badhotri hoti hai or laa nina ke barso me samudri stha ka tapmaan kam ho jata hai. Smanyat ell nino ke barso me bharat me manson kamjor jabki laa nina ke barso me manson majboot hota hai
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मौसम संबंधी समाचारों में आपने अल नीनो और ला नीना के बारे में सुना होगा। ये दोनों होते क्या हैं? इनका हम पर और हमारे मौसम पर किस तरह का प्रभाव पड़ता है?
अमेरिकन जियोसाइंस इंस्टिट्यूट के अनुसार अल नीनो और ला नीना शब्द का संदर्भ प्रशांत महासागर की समुद्री सतह के तापमान में समय-समय पर होने वाले बदलावों से है, जिसका दुनिया भर में मौसम पर प्रभाव पड़ता है। अल नीनो की वजह से तापमान गर्म होता है और ला नीना के कारण ठंडा। दोनों आमतौर पर 9-12 महीने तक रहते हैं, लेकिन असाधारण मामलों में कई वर्षों तक रह सकते हैं।
अल नीनो किसे कहते है?
ऊष्ण कटिबंधीय प्रशांत के भूमध्यीय क्षेत्र में समुद्र का तापमान और वायुमंडलीय परिस्थितियों में आये बदलाव के लिए जिम्मेदार समुद्री घटना को अल नीनो कहते हैं। इस बदलाव के कारण समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से बहुत अधिक हो जाता है। ये तापमान सामान्य से 4 से 5 डिग्री सेल्सियस अधिक हो सकता है।
अल नीनो का मौसम पर असर
अल नीनो जलवायु प्रणाली का एक हिस्सा है। यह मौसम पर बहुत गहरा असर डालता है। इसके आने से दुनियाभर के मौसम पर प्रभाव दिखता है और बारिश, ठंड, गर्मी सबमें अंतर दिखाई देता है। राहत की बात ये है कि ये दोनों ही हालात हर साल नहीं, बल्कि 3 से 7 साल में दिखते हैं।
अल नीनो के दौरान, मध्य और पूर्वी भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में सतह का पानी असामान्य रूप से गर्म होता है। पूर्व से पश्चिम की ओर बहने वाली हवाएं कमजोर पड़ती हैं और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में रहने वाली गर्म सतह वाला पानी भूमध्य रेखा के साथ पूर्व की ओर बढ़ने लगता है।
तापमान पर असर
समुद्र की सतह का तापमान बढ़ने से समुद्री जीव-जंतुओं पर इसका बुरा असर पड़ता है। मछलियां और दूसरे पानी में रहने वाले जीव औसत आयु पूरी करने से पहले ही मरने लगते हैं। इसके असर से बारिश होने वाले क्षेत्रों में बदलाव आते हैं, अर्थात कम बारिश वाली जगहों पर बारिश अधिक होती है। यदि अल नीनो दक्षिण अमेरिका की तरफ सक्रिय हो तो भारत में उस साल कम बारिश होती है।..