Biology, asked by parmarvinita74, 1 month ago

एमपी ऑफ के रुधिर परिवहन तंत्र को करते हुए उसे रुधिर परिवहन तंत्र को समझाइए longs ans.​

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Answered by gayatripandey079
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Explanation:

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Answered by gulammustafasrc786
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Explanation:

रक्त एक प्रकार का तरल संयोजी ऊतक है। रक्त का निर्माण लाल अस्थि मज्जा में होता है तथा भ्रूणावस्था में प्लीहा में रक्त का निर्माण होता है। सामान्य व्यक्ति में लगभग 5 से 6 लीटर रक्त होता है। जो प्रतिशत में सात से आठ प्रतिशत पाया जाता है। रुधिर का निर्माण दो घटकों से होता है जिन्हें क्रमशः रुधिर प्लाज्मा और रुधिर कणिकाएं कहा जाता है।

रक्त का Ph मान 7.4 (हल्का क्षारीय) होता है। रक्त का तरल भाग प्लाज्मा कहलाता है। जो रक्त में 55 प्रतिशत होता है। तथा शेष 45 प्रतिशत कणीय(कणिकाएं) होता है। रक्त का अध्ययन हिमोटॉलॉजी कहलाता है। रक्त निर्माण की प्रक्रिया हीमोपोइसिस कहलाती है।

ऊंचाई पर जाने पर RBC की मात्रा बढ़ जाती है। लाल रक्त कणीका का मुख्य कार्य आक्सीजन का परिवहन करना है। मानव शरीर में सामान्य रक्त चाप (Blood Fresher) 120/80 एम.एम. होता है। उच्च रक्तदाब की स्थिति हृदय के संकुचित होने पर बनती हैं जिसे सिस्टोल कहते हैं। तथा निम्न रक्त दाब की स्थिति हृदय के फैलने पर बनती है जिसे डायस्टोल कहते हैं।

प्लाज्मा

प्लाज्मा में लगभग 92 प्रतिशत जल व 8 प्रतिशत कार्बनिक व अकार्बनिक पदार्थ घुलित या कोलॉइड के रूप में होते है।

प्लाज्मा शरीर को रोगप्रतिरोधक क्षमता प्रदान करता है। उष्मा का समान वितरण करता है। हार्मोन को एक स्थान से दुसरे स्थान पर ले कर जाता है।

कणिय भाग(कणिकाएं)

रूधिर कणिकाएं संपूर्ण रुधिर का 40 से 45% भाग बनाती हैं जो कार्य एवं संरचना के आधार पर तीन प्रकार की होती हैं। जिन्हें क्रमशः आरबीसी, डब्ल्यूबीसी एवं ब्लड प्लेट्स कहा जाता है।

1. लाल रूधिर कणिकाएं (RBC)

आरबीसी को एरिथ्रोसाइट्स के नाम से जाना जाता है इसका निर्माण लाल अस्थि मज्जा वाले भाग से होता है। भ्रूणावस्था में आरबीसी का निर्माण प्लीहा तथा यकृत से होता है। आरबीसी संरचना में अंडाकार होती है।

ये कुल कणिकाओं का 99 प्रतिशत होती है। ये केन्द्रक विहीन कोशिकाएं है। इनमें हिमोग्लोबिन पाया जाता है। हीमोग्लोबिन की केंद्रक में आयरन धातु पाई जाती है। जिसके कारण रक्त का रंग लाल होता है। हीमोग्लोबिन O2 तथा CO2 का शरीर में परिवहन करता है। इसकी कमी से रक्तहीनता(एनिमिया) रोग हो जाता है। लाल रक्त कणिकाएं प्लीहा में नष्ट होती है। अतः प्लीहा को लाल रक्त कणिकाओं का कब्रिस्तान भी कहते है।

एक व्यस्क मनुष्य में लाल रक्त कणिकाओं की संख्या लगभग 5 से 5•5 लाख/mm 3 होती है इसका जीवन काल 120 दिन होता है। आरबीसी का मुख्य कार्य ऑक्सीजन का परिवहन करना है।

संसार के समस्त स्तनधारी प्राणियों के आरबीसी में केंद्रक नहीं पाया जाता है लेकिन ऊंट तथा लामा दो ऐसे स्तनधारी प्राणी है। जिनकी आरबीसी में केंद्रक पाया जाता है। ऊंट एक ऐसा स्तनधारी प्राणी है जिसकी आरबीसी का आकार सबसे बड़ा होता है। हिरण की आरबीसी का आकार सबसे छोटा होता है।

यदि किसी व्यक्ति को कुछ दिनों के लिए अंतरिक्ष या माउंट एवरेस्ट पर्वत पर छोड़ दिया जाए तो आरबीसी की संख्या और आकार दोनों बढ़ जाएंगे।

2. श्वेत रक्त कणिकाएं (WBC)

ये प्रतिरक्षा प्रदान करती है। इसको ल्यूकोसाइट भी कहते है। WBC का निर्माण मनुष्य के शरीर में श्वेत अस्थि मज्जा से होता है। डब्ल्यूबीसी का जीवनकाल मनुष्य के शरीर में लगभग 8 से 10 दिन का होता है। डब्ल्यूबीसी की संख्या मनुष्य के शरीर में लगभग 5000 से 9000 प्रति घन मिली मीटर होती है। आरबीसी और डब्ल्यूबीसी का अनुपात रुधिर में 600:1 होता है।

डब्ल्यूबीसी आकार में अमीबा के आकार की होती हैं अर्थात इसका कोई निश्चित आकार नहीं होता है। डब्ल्यूबीसी का मुख्य कार्य हानिकारक जीवाणुओं से शरीर की सुरक्षा करना है।

केन्द्रक की आकृति व कणिकाओं के आधार पर श्वेत रक्त कणिकाएं 5 प्रकार की होती है। रक्त में श्वेत रक्त कणिकाओं का अनियंत्रित रूप से बढ़ जाना ल्यूकेमिया कहलाता है। इसे रक्त कैसर भी कहते है।

आकार में सबसे बड़ी डब्ल्यूबीसी मोनोसाइट्स है लिंफोसाइट प्रकार की डब्ल्यूबीसी आकार में सबसे छोटी होती है। संख्या में सबसे अधिक न्यूट्रोफिल प्रकार की डब्ल्यूबीसी पाई जाती हैं।

3.रक्त पट्टिकाएं(प्लेटलेट्स)

रुधिर पटलिकाओं को थ्रोम्बोसाइट के नाम से जाना जाता है। रुधिर पटलिकाओं का निर्माण लाल अस्थि मज्जा से होता है। जो संरचना में प्लेट के आकार के होते हैं। ये केन्द्रक विहिन कोशिकाएं है जो रूधिर का धक्का बनने में मदद करती है इसका जीवन काल 5-9 दिन का होता है। ये केवल स्तनधारियों में पाई जाती है। रक्त फाइब्रिन की मदद से जमता है। इसकी संख्या मनुष्य के शरीर में लगभग 3 से 5 लाख प्रति घन मिलीमीटर होती है।

डेंगू जैसी विषाणु जनित बीमारी में शरीर में प्लेटलेट्स की संख्या कम हो जाती हैं। क्योंकि डेंगू के विषाणु प्लेटलेट्स को खा जाते हैं।

चिकित्सालयों के “ब्लड बैंक” में रक्त को लगभग 40 डिग्री फारेनहाइट ताप पर 1 महीने तक सुरक्षित रखा जाता है। इस रक्त को जमने से रोकने के लिए सोडियम साइट्रेट तथा सोडियम ऑक्सजलेट रसायन मिलाए जाते हैं। यह रसायन रक्त को जमाने वाले तत्व कैल्शियम को प्रभावहीन कर देते हैं।

लसिका तंत्र

लाल रुधिराणु अनुपस्थित रहती है । श्वेत रुधिराणु अधिक लिंफोसाइट सबसे अधिक होते हैं। यह रक्त के समान परंतु रंगहीन द्रव है। इसके द्वारा लसिका कणिकाओं का निर्माण किया जाता है लसीका कोशिका लसीका नोड से निर्मित होती है। जो एक सिरे पर खुली तथा दूसरे सिरे पर बंद होती है। लसीका द्रव शरीर के विभिन्न अंगों से हृदय की ओर बढ़ता है।इसकी खोज लैंड स्टीनर ने की थी। इसका वर्गीकरण एंटीजन के आधार पर किया गया।

हल्के पीले रंग का द्रव जिसमें RBC तथा थ्रोम्बोसाइट अनुपस्थित होता है। केवल WBC उपस्थित होती है।

कार्य

रक्त की Ph को नियंत्रित करना।

रोगाणुओं को नष्ट करना।

वसा वाले ऊतकों को गहराई वाले भागों तक पहुंचाना।

लम्बी यात्रा करने पर लसिका ग्रन्थि इकठ्ठा हो जाती है, तब पावों में सुजन आ जाती है।

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