History, asked by manusajjy911, 9 months ago

एनिमल फटाफट स्टोरी ऑन संत नामदेव रिलेटेड टू इन वन क्लास नोटबुक ​

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Answered by KaurBisman03
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नामदेव नाम का एक बालक घर के बाहर खेल रहा था कि उसकी मां ने उसे बुलाया और कहा, बेटा, अमुक वृक्ष की छाल उतार लाओ, एक आवश्यक दवा बनानी है। मां का आदेश मिलते ही बालक जंगल चला गया। जंगल में उसने चाकू से पेड़ की छाल खुरची और उसे लेकर वापस आने लगा, मगर उसमें से रस टपकता जा रहा था। बालक का स्वभाव बचपन से ही सत्संगी था। जंगल से लौटते हुए रास्ते में जाते हुए उसे एक महात्मा मिले। नामदेव ने उन्हें झुककर प्रणाम किया।

संत ने पूछा, ‘हाथ में यह क्या है नामदेव/’ नामदेव ने जवाब दिया, ‘दवा बनाने के लिए पेड़ की छाल ले जा रहा हूं।’ संत बोले, ‘क्या तुमको पता नहीं है कि हरे पेड़ को क्षति पहुंचाना अधर्म है/ वृक्षों में भी जीवन होता है। इन्हें देवता मानकर पूजा जाता है। वैद्य जब इसकी पत्तियां तोड़ते हैं, तो पहले हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हैं कि दूसरों के प्राण बचाने के उद्देश्य से आपको कष्ट दे रहा हूं। यह हमारी संस्कृति का विधान है।’ संत के वचनों ने नामदेव पर गहरा असर डाला।

गहरी सोच में डूबा नामदेव घर पहुंचा। उसने छाल मां को दे दी और कमरे के कोने में बैठकर चाकू से अपने पैर की खाल छीलने लगा। जब पैर से खून बहते देखा तो मां घबराते हुए बोली, ‘क्या बावला हो गया है/ यह क्या कर रहा है/’ बालक बोला, ‘संतजी ने कहा था कि पेड़ों में जीवन होता है। मैं पैर की खाल उतार कर यह समझने की कोशिश कर रहा हूं कि जब मैं पेड़ की छाल उतार रहा था तब पेड़ को कितना दर्द हुआ होगा!’

मां ने बेटे को छाती से लगा लिया। वह समझ गई कि सत्संगी विचारों में आकर यह संत बन गया है। आगे चलकर यही बालक संत नामदेव नाम से प्रसिद्ध हुए और इन्होंने कण-कण में भगवान के दर्शन किए। पेड़ तो पेड़ चींटी को भी कोई क्षति न पहुंचे, वे इसका हमेशा ध्यान रखते थे।

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