Hindi, asked by JACKAK47, 1 year ago

environment and pollution information in hindi

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Answered by cathrin12
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मनुष्य के उत्तम स्वास्थ्य के लिए वातावरण का शुद्ध होना परम आवश्यक होता है। जब से व्यक्ति ने प्रकृति पर विजय पाने का अभियान शुरु किया है , तभी से मानव प्रकृति के प्राकृतिक सुखों से हाथ धो रहा है। मानव ने प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ दिया है , जिससे अस्वास्थ्यकारी परिस्थितियाँ जन्म ले रही हैं। पर्यावरण में निहित एक या अधिक तत्वों की मात्रा अपने निश्चित अनुपात से बढ़ने लगती हैं , तो परिवर्तन होना आरंभ हो जाता है। पर्यावरण में होने वाले इस घातक परिवर्तन को ही प्रदूषण की संज्ञा दी जाती है। यद्यपि प्रदूषण के विभिन्न रुप हो सकते हैं , तथापि इनमें वायु - प्रदूषण , जल - प्रदूषण , भूमि प्रदूषण तथा ध्वनि - प्रदूषण मुख्य हैं। ' वायु - प्रदूषण ' का सबसे बड़ा कारण वाहनों की बढ़ती हुई संख्या है। वाहनों से उत्सर्जित हानिकारक गैसें वायु में कार्बन मोनोऑक्साइड , कार्बन डाईऑक्साइड , नाइट्रोजन डाईऑक्साइड और मीथेन आदि की मात्रा बड़ा रही हैं। लकड़ी , कोयला , खनिज तेल , कार्बनिक पदार्थों के ज्वलन के कारण भी वायुमंडल दूषित होता है। औद्योगिक संस्थानों से उत्सर्जित सल्फर डाई - ऑक्साइड और हाईड्रोजन सल्फाइड जैसी गैसें प्राणियों तथा अन्य पदार्थों को काफी हानि पहुँचाती हैं। इन गैसों से प्र दूषित वायु में साँस लेने से व्यक्ति का स्वास्थ्य खराब होता ही है , साथ ही लोगों का जीवन - स्तर भी प्रभावित होता है। ' जल प्रदूषण ' का सबसे बड़ा कारण साफ जल में कारखानों तथा अन्य तरीकों से अपशिष्ट पदार्थों को मिलाने से होता है। जब औद्योगिक अनुपयोगी वस्तुएँ जल में मिला दी जाती हैं , तो वह जल पीने योग्य नहीं रहता है। मानव द्वारा उपयोग में लाया गया जल अपशिष्ट पदार्थों ; जैसे - मल - मूत्र , साबुन आदि गंदगी से युक्त होता है। इस दूषित जल को नालों के द्वारा नदियों में बहा दिया जाता है। ऐसे अनेकों नाले नदियों में भारी मात्रा में प्रदूषण का स्तर बढ़ा रहे हैं। ऐसा जल पीने योग्य नहीं रहता और इसे यदि पी लिया जाए , तो स्वास्थ्य में विपरीत असर पड़ता है। मनुष्य के विकास के साथ ही उसकी आबादी भी निरंतर बढ़ती जा रही है। बढ़ती आबादी की खाद्य संबंधी आपूर्ति के लिए फसल की पैदावार बढ़ाने की आवश्यकता पड़ती है। उसके लिए मिट्टी की उर्वकता शक्ति बढ़ाने का प्रयास किया जाता है। परिणामस्वरूप मिट्टी में रासायनिक खाद डाली जाती है , इसे ही ' भूमि प्रदूषण ' कहते हैं। इस खाद ने भूमि की उर्वरकता को तो बढ़ाया परन्तु इससे भूमि में विषैले पदार्थों का समावेश होने लगा है। ये विषैले पदार्थ फल और सब्जियों के माध्यम से मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर उसके स्वास्थ्य पर विपरीत असर डाल रहे हैं। मनुष्य ने जबसे वनों को काटना प्रारंभ किया है , तब से मृदा का कटाव भी हो रहा है। ' ध्वनि प्रदूषण ' बड़े - बड़े नगरों में गंभीर समस्या बनकर सामने आ रहा है। अनेक प्रकार के वाहन , लाउडस्पीकर और औद्योगिक संस्थानों की मशीनों के शोर ने ध्वनि प्रदूषण को जन्म दिया है। इससे लोगों में बधिरता , सरदर्द आदि बीमारियाँ पाई जाती हैं। प्रदूषण को रोकने के लिए वायुमंडल को साफ - सुथरा रखना परमावश्यक है। इस ओर जनता को जागरुक किया जाना चाहिए। बस्ती व नगर के समस्त वर्जित पदार्थों के निष्कासन के लिए सुदूर स्थान पर समुचित व्यवस्था की जानी चाहिए। जो औद्योगिक प्रतिष्ठान शहरों तथा घनी आबादी के बीच में हैं , उन्हें नगरों से दूर स्थानांतरित करने का पूरा प्रबन्ध करना चाहिए। घरों से निकलने वाले दूषित जल को साफ करने के लिए बड़े - बड़े प्लाट लगाने चाहिए। सौर ऊर्जा को बढ़ावा देना चाहिए। वन संरक्षण तथा वृक्षारोपण को सर्वाधिक प्राथमिकता देना चाहिए। इस प्रकार प्रदूषण युक्त वातावरण का निर्माण किया जा सकेगा।

REGARDS
@CATHRIN

cathrin12: MARK as brainleist
cathrin12: plz
Anonymous: I cannot mark becoz i have not created this question
cathrin12: Oh.... I said it to poster
Anonymous: okay
Anonymous: why thanks to me
Anonymous: ???\
Answered by Anonymous
2
कोयले और लकड़ी का जल, और केंद्रित क्षेत्रों में कई घोड़ों की उपस्थिति ने शहरों को प्रदूषण की हड्डियों को बनाया। औद्योगिक क्रांति ने अनुपचारित रसायनों का एक जलमग्न और स्थानीय धाराओं में अपशिष्ट लाया जो पानी की आपूर्ति के रूप में काम करते थे। इंग्लैंड के राजा एडवर्ड I ने 1272 में लंदन में घोषणा के माध्यम से समुद्री कोयला जलाने पर रोक लगा दी थी, उसके धुआं एक समस्या बन गई थी। लेकिन इंग्लैंड में इतना ईंधन इतना सामान्य था कि इसके लिए सबसे पहले नाम का अधिग्रहण किया गया था क्योंकि यह ठिकाने से कुछ समुद्र तटों से दूर किया जा सकता है। यह औद्योगिक क्रांति थी जिसने पर्यावरण प्रदूषण को जन्म दिया जैसा कि आज हम जानते हैं। लंदन ने 1858 के टेम्स पर ग्रेट स्टंक के साथ पानी की गुणवत्ता की समस्याओं के पहले चरम मामलों में भी एक रिकॉर्ड किया, जिसके बाद जल्द ही लंदन सीवरेज सिस्टम का निर्माण हो गया। जनसंख्या वृद्धि के रूप में प्रदूषण के मुद्दों को बढ़ाया जाता है ताकि उनकी बर्बादी की समस्या को संभालने के लिए पड़ोसियों की देख-रेख क्षमता ज्यादा हो। सुधारकों ने सीवर सिस्टम और स्वच्छ पानी की मांग करना शुरू कर दिया। 1870 में, बर्लिन में स्वच्छता की स्थिति यूरोप में सबसे खराब थी। अगस्त बेबेल ने 1870 के दशक के अंत में एक आधुनिक सीवर प्रणाली का निर्माण करने से पहले स्थितियों को याद किया: सड़कों या वर्गों में सार्वजनिक शौचालय नहीं थे, "घरों से अपशिष्ट जल को रोकने के साथ चलने वाले गटरों में एकत्रित किया गया था और वास्तव में डरावना गंध निकलता था। स्वच्छता की सुविधा अविश्वसनीय रूप से आदिम थी .... एक महानगर के रूप में, बर्लिन बर्बरता से 1870 तक सभ्यता में उभरकर नहीं आया था। "[7] प्राचीन राष्ट्रीय परिस्थितियों के लिए आदिम शर्तों असहनीय थीं, और इंपीरियल जर्मन सरकार ने अपने वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और शहरी नियोजकों को न केवल उतार-चढ़ाव को हल करने के लिए बल्कि बर्लिन को विश्व के आदर्श शहर के रूप में विकसित करने में लाया। 1 9 06 में एक ब्रिटिश विशेषज्ञ ने निष्कर्ष निकाला कि बर्लिन ने "विज्ञान, व्यवस्था और सार्वजनिक जीवन की विधि का सबसे पूरा अनुप्रयोग" को दर्शाया, "यह नागरिक प्रशासन का चमत्कार है, यह सबसे आधुनिक और सबसे अच्छी तरह से संगठित शहर है।"

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