environmental issues in Sanskrit
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प्राकृतिक सम्पदा के निरन्तर दोहन से आज हमारा पर्यावरण प्रदूषण से भर गया है। पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए प्रकृति एवं मानव के बीच संतुलन आवश्यक है । वैदिक ऋषि मानव एवं प्रकृति के 1. संतुलन के प्रति पूर्ण सजग थे वैदिक एवं प्राचीन संस्कृत साहित्य में पर्यावरण की रक्षा के लिए जल, वायु, भूमि, वृक्ष आदि प्राकृतिक तत्त्वों को अत्यंत आदर-भाव से माता-पिता के समान कहा गया है तथा पर्यावरण के संरक्षण के लिए अनेक उपाय प्रतिपादित किए गए हैं। उनमें निहित पर्यावरण-चेतना आज के मानव को समीचीन पथ दिखाती है।
प्रस्तुत ग्रन्थ प्राचीन संस्कृत साहित्य में पर्यावरण परिशीलन (विशेष सन्दर्भ: वेद, रामायण एवं कालिदास साहित्य) के नौ अध्यायों में प्राचीन संस्कृत वाचय में वर्णित पर्यावरण-संरक्षण के विभिन्न उपायों का वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अनुशीलन किया गया है। प्रथम अध्याय में प्राचीन संस्कृत साहित्य (दशम शताब्दी तक) का संक्षिप्त परिचय एवं पर्यावरणीय विवेचन प्रस्तुत है। द्वितीय अध्याय में पर्यावरण की अवधारणा का विवेचन प्रस्तुत है तृतीय अध्याय पर्यावरण प्रदूषण के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डालता है। चतुर्थ अध्याय में मानसिक पर्यावरण
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अस्मान् परितः यानि पञ्चमहाभूतानि सन्ति तेषां समवायः एव परिसरः अथवा पर्यावरणम् इति पदेन व्यवह्रीयते । इत्युक्ते मनुष्यो यत्र निवसति, यत् खादति, यत् वस्त्रं धारयति, यज्जलं पिबति यस्य पवनस्य सेवनं करोति,तत्सर्वं पर्यावरणम् इति शब्देनाभिधियते। अधुना पर्यावरणस्य समस्या न केवलं भारतस्य अपितु समस्तविश्वस्य समस्या वर्तते। यज्जलं यश्च वायुः अद्य उपलभ्यते, तत्सर्वं मलिनं दूषितं च दृश्यते।