एस्से ऑन जब मैं कक्षा में प्रथम आया इन हिंदी
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मैं हमेशा से औसत दर्जे का विद्यार्थी रहा हूँ। मैंने कभी शिक्षा को इतनी गंभीरता से नहीं लिया। बस जानता था कि पास होना है। अतः उतने ही अंक के लिए प्रयास करता था, जितने में पास हो जाऊँ। बात उस समय की है, जब मेरा दोस्त अमित बहुत बीमार पड़ गया। अमित को घर में तीन महीने रहना पड़ा। मैं रोज़ उसे बताता की आज स्कूल में यह-यह पढ़ाया गया है। अमित मुझसे बहुत प्रश्न करता मैं उसके प्रश्नों के उत्तर नहीं दे पाता था। धीरे-धीरे अमित के लिए मैंने ध्यान से सुनना आरंभ किया। इस तरह वह विषय अमित को समझाना सरल हो गया। उसके साथ स्कूल का काम करवाता, जहाँ उसे दिक्कत आती उसे हल करता। उसके साथ बैठकर पढ़ता। इस तरह जाने-अनजाने मुझे मेहनत करनी पड़ी। पहली बार ऐसा था कि मुझे प्रश्नों का उत्तर देते हुए कुछ कठिन नहीं लगा था। जब मैंने परीक्षा दी तो मैंने अपने विद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त किया। मेरे परिवारवाले से लेकर विद्यालय तक में सब हैरान थे। मैं स्वयं हैरान था। सबने मेरी प्रशंसा की । मैं विद्यालय में सबके लिए मिसाल बन गया। विद्यालय, अध्यापिका, माता-पिता तथा अमित के माता-पिता द्वारा मुझे पुरस्कार स्वरूप बहुत से उपहार मिले। मेरी जीवन की दिशा ही बदल गई। मुझे समझ में आया कि प्रथम आने पर जो मान-सम्मान और प्रेम मिलता है, वह अलग ही है। मेरे साथियों तक ने मुझे सराहा। यह मेरे लिए बहुत यादगार पल रहा।
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